पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/३३१

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विद्यापति ।।

राधा । ६ २७ कालि कहल पिया ए साँझहिरे जायव मोये मारूअ देश । मोये अभागली नहि जानल रे सङ्ग जइतेश्रो योगिनी वेश ॥२॥ हृदय बड़ दारून रे पिया बिनु विहरि न जाय ॥३॥ एक शयन सखि शुतल रे अछल बालभु निशि मोरे । न जानल कति खन तेजि गैलरे विठ्ठल चकेवा जोर ॥५॥ शून शेज हिय शालय रे पियाए विनु घर मोये आजि ।। विनति करहु सहिलोलिनि रे मोहि देह अगि हर साजि ॥७॥ विद्यापति कवि गोल रे अवि मिलत पिय तोर ।। लरिखमा देइ वर नागर रे राय शिवासंह नहि भौर ॥६॥ राधा । ६२८ हए बुलिए चुलि भमर करूना कर ही दई आई की भी कार सुतल पिया आन्तरो न दे दिया के जाने कझोन दिग गैल ॥२॥ अरे कैसे जीउव मञरे सुमरि बालभु नव नेह ॥३॥ एकहि मन्दिर बास पि न पुछए हास मोरे लेखे समुदके पार । ई दुइ जौवना तरुन लाख लह से आवे परस गमार ॥५॥ पट सुति दुनि बुनि मोति सरि किनि किनि मोरे पियाने गायल हारे । १ लाख तत्व हम इग्बी गाथल से आवे तोजत गभार ||७|| 30