पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/३३४

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विद्यापति । अरेरे पथिक भई समाद लए जइह जाहि देस बस मोर नाह । हमर से दुख सुख तहि पिआ काहिह सुन्दर समाइलि वाह ॥६॥ भनइ विद्यापति अरेरे जुवति अवे चिंते करह उछाह । राजा सिवसिंह रूपनराएन लाख देवि वर नाह् ॥११॥ राधा । ६२६ हमर नागर रहल दरदेश । केऊ नहि कह सखि कुशल सन्देश ।।२।। ए सखि काहि करव अपतोस । हमर अभागि पिया नहि दोस ।।४।। पिया विसरल सखि पुरूव पिरीति। जखन कपाल वाम सब विपरीति ॥६॥ मरमक वेदन मरमहि जान । आनक दुख आन नहि जान ॥६॥ भनइ विद्यापति नपुरले काम । कि करति नागरि जाहि विधि वाम ।।१०॥ राधा । पिया छल चन्द हम छल देही । के पापि तोड़त ऐसन नेहा ॥३॥ पिया छत खञ्जन हम छत खञ्जनि । के बाँधल पिया मरम नहि जानि ॥४॥ पिया छत साम तक हम छल लती । के भाङ्गल तरू न बुझि वेवथा ॥६॥ 'पिया छत कामक्लाहम छल कामिनि। पिया विनुनहि जाए दिन यामिनि ॥८॥