पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/३९०

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। ३७४ विद्यापति ।' तुय गुण गणइते निन्द न होइ । अवनत अनने धनि कत रोई ॥ ८॥ भनइ विद्यापति सुन वरकान । बुझल तुय हिया दारुण पसान ॥१०॥ दूती । ७४५ माधव अबला पेखलु मतिहीना । सारङ्ग शवदे मदन अधिकाओल तेञि दिने दिने भेल क्षीणा ॥२॥ गेल विदेश सन्देश न पठओल कैसे जीयत ब्रजबाला । तो, विनु सुन्दरी ऐसनि भेलहि जइसे नलिनी पर पाला ॥४॥ , सकल रजनी धनी रोइ गमावय सपने न देखय तोय । धैरज कइसे धरव वर कामिनी विपरीत काम विमोय ॥६॥ विद्यापति भन सुन वर माधव हम आओल तुय पास । चोके चलह अब धैरज न सह ऐसन विरह हुताश ॥८॥ दूती ।। , ७४६ । । । माधव से अब सुन्दर बाला । । । । । अविरत नयने वारि झरु निझर जनि घन-साङ्ण माला ॥२॥ । ।