पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/४०३

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= = विद्यापति । . जावे न कर पिक गाने ।। विद्यापति भन हरि बड़ चेतन समय करत समधाने ॥८॥ दूती । ७६१ चन्दन गरल समान । शीतल पवन हुताशन जान ॥ २ ॥ हेरइ सुधानिधिसूर । निशि बैठल सुवदनि शूर ॥ ४ ॥ हरि हरि दारुण तोहारि सिनेह । ताहेरि जीवन पड़ल संदेह ॥ ६ ॥ गुरुजन लोचन वारि । धनि वाटिया हेरइ तोहारि ।। ८ ।। तेजइ नयन घन नीर । कत वेदन सहत शरीर ॥१०॥ सुकवि विद्यापति भान । दूतीकवचन लजायल कान ॥१३॥ दूती । '७६२ सुन सुन निठुर कनाई । जाइ न पेखह राइ ॥ २ ॥ किशलय रचित कुटीरे । शयने न वान्धई थीरे ॥ ४ ॥ से अवला कुलवाला । कत सह विरहक ज्वाला ॥ ६ ॥ घामे घरमाइत देह । गलि गलि जायत सेह ॥ ८ ॥ नुनिक पुतलि तनु ताय । आतप ताये मिलाय ॥१२॥