पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/४०४

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५ ०ww 16:35, 16 February 2019 (UTC)16:35, 16 February 2019 (UTC)~ 16:35, 16 February 2019 (UTC)16:35, 16 February 2019 (UTC)नीलम (talk) 16:35, 16 February 2019 (UTC) । ३८४ विद्यापति । ••• ••• • wwwwv००० हेरि सखी हल : गेयान । कण्ठहि आओत. प्राण ॥१२॥ दीघल दिवस न जाय । कान्दिया रजनी 'पोहाय ॥१४॥ कबहु ऐसे मुरुछान । यामिनी दिवस न जान ॥१६॥ भूपति कि कहव तोय । पुन नहि हेरराव मोय ॥१८॥


दूती ।

| सुन सुन माधव सुन मोरि वानी । तुय दरसने विनु जइसनि सयानी ॥ २ ॥ सयन, मगन भेल तोहरि देहा । कुहु तिथि मगनि जइसनि ससिरेहा ॥ ४ ॥ सखि जने ऑचरे धइल झपाइ । अपनहि, सॉसे जाइति उडिआइ ॥६॥ मुरुछि खसलि महि पेयसि तौरी । हरि हरि शिव शिव एतवाए बोली ॥ ८ ॥ अब सेओ जीव तेजति तुअ लागी । ताक मरन वध होएवह भागी ॥१०॥ भनइ विद्यापति के कर तरान । तुअ दरशन एक जीव निदान ॥१२॥ दूती । सुपुरुष प्रेम सुधनि अनुराग । दिने दिने बाढ़ अधिक दिन लाग ॥ २ ॥ माधव हे मधुरापति नाह। अपन कमलिनी सूर आने आने अनुभाव । भमि भमि , गुण ॥ भनइ विद्यापति एहु रस भान । शिरि । | रस '