पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/४३३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

विद्यापति ।, जागि उठल पञ्चवान । वसि नहि रहल गेयान ॥ ६ ॥ भनाहि विद्यापति भान । सुपुरुष न कर निदान ॥ ८ ॥ राधा । ८१३ आजु रजनी हम भागे गमाल पेखल पिया मुख चन्दा । जीवन यौवन सफल करि मानल दश दिश भैल निरदन्दा ॥ २ ॥ आजु मझु गेह गेह करि मानल आजु मझु देह भेल देहा । आजु विहि मोहे अनुकुल होयज टूटल सबहु सन्देहा ॥ ४ ॥ सोइ कोकिल अब लाख डाकउ लाख उदय करु चन्दा । पॉचबाण अब लाख वाण होउ मलय पवन बहु मन्दा ॥ ६ ॥ अव मझु जव पिया सङ्ग होयत तबहि मानव निज देहा । विद्यापति कह अलप भागि नह धनि धनि तुय नव नेहा ॥ ८॥ राधा । ८१४ जनम कृतारथ सुपुरुष सङ्ग । सेहे दिवस जो नहि मन भङ्ग ॥ २ ॥ हृदयक आनन्दे सुख परगासे । तरनि तेजे हो कमल विगास ॥ ४ ॥ भल भेल माइ हे कुदिवस गेल ।हरि निधि मिलल सकल सिधि भेल ॥६॥