पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/४५३

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विद्यापति । १२७ घन घन घनय घुघुर कत वाजय हन हन कर तुझे काता।। विद्यापति कवि तु पद् सेवक पुत्र विसरु जनु माता ॥८॥ जय जय भगवति जय महामाया । त्रिपुर सुन्दर देवि करु दाया ॥आहे माता ॥३॥ दालिम कुसुम सम तुअ तनु छवी । तखने उदित भेल जनि रवी ।। ४ ।। | धनु सरे पास अङ्कुस हाथ । तेतिस कोटि देव नाव साथ ॥ ६ ॥ | चन्दिम उपम न पाव । काम रमनि दासि पद दाव ।। ८॥ जय जय भगवति भीमा भवानी । चार वेदे अवतरु ब्रह्मवादिनी ॥ २ ॥ हरि हर ब्रह्मा पुछइत भने । एक न जान तुअ आदि मरमे ।। ४ ।। भनइ विद्यापति राय मुकुटमणि । जिवो रुपनरायन नृपति धरणि ।। ६ ।। कनक भूधर शिखरवासिनि चन्द्रिकाचय चारु हालिनि , | दशन कोटि विकाश वङ्किम तुलित चन्द्र कले। । कुद सुररिपुबलनिपातिनि महिप शुम्भनिशुम्भघातिनि ।। । भौतभक्त भयापनौदन पाटल अबजे ॥२॥ -