पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/४५५

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विद्यापति । | एक शरीर लेल दुइ बास । खने वैकुण्ठ वनहि कैलास ॥१०॥ । भनइ विद्यापति विपरित वानि । यो नारायन ओ सुलपानि ।।१२।। जए जए शङ्कर जए त्रिपुरारि । जए अध पुरुस जए अध नारि ॥ ३ ॥ आधा धवल आधा तनु गोरा । अाध सहज कुच आध कटोरा ।। ४ ।। आध हड्माला आधी गजमाती । आधा चन्दन सेभे आध विभूती ।। ६ ।। आध चेतन मति आधा भोरा । आध पटोर आध मुज डोरा ।। ८ ।। आध जोग आधि भौग विलासी । प्राध पिधान आध नग वासी ॥१०॥ आध चान्द आध सिन्दुर सोभा । आध विरुप आध जग लोभा ॥१२॥ भने कविरतन विधाता जाने । दुई कए वादल एक पराने ॥१४॥ एतए कृतए अएल जति गोरि अछ तपे । राजरे कुमारि वेट डरव देखि सापे ॥२॥ तोड्व मोने जटाजूट फोड़व वोकाने । हटल न मान जति होएत अपमाने ॥४॥ तीनि नअन हर वीपम जर दहनू । उमा मोरि ननुमि हेरह जन् ।।६।।