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पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/४९

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विद्यापति । --- - - - -


-- सखी से सखी । आइलि निकट बाटे छुइलि मदन साटे दृढ़ बान्धे दरसिल केस । रमन भवन बार पलटि पाछ हेरि | आलि दिठि दए गैलि सन्देस ॥ २ ॥ आओर कि करति सखि परिनत ससिमुखि कान्ह जदि न बूझ विसेस ॥ ३ ॥ आचर धरइते करे लउलि लाज भरे। नमइते मुखेरि उपाम । न जानो कमन जो कमल नाल सञो कमल ममोलल काम् ॥ ५ ॥ कबि भने विद्यापति आभनव रतिपति सकल कलारस जान । राजबलभ जिवो मति सिरि महेसर रेणुक देवि रमान ॥ ७ ॥ (१) छुलि=स्पर्श करि । साटेकाडा, धायुफ । (२) अलि=ससि । (४) लडलि=नमित हुई। (७) राजबलभ=राजसुहृत् ।