पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/८२

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विद्यापति । मिलन। सखी से सखी। सुन्दरि चललिह पहु घर ना । चहु दिश सखि सव कर धरना॥ २॥ जाइतहे लागु परेम डर ना । जइसे ससि कॉप राहु डर ना ॥ ४॥ जइतेहि हार टुटिए गेल ना । भूपन बसन मलिन भेल ना ॥ ६ ॥ रोए रोए कजलि वहाय देल ना । अदकहिसिन्दुर मेटाय गेल ना॥८॥ भनइ विद्यापति गाओल ना। दुख सहि सहि सुख पामोल ना ॥१०॥ राधा। १४८ अहे सखि अहे सखि लइ जनु जाहे । हम अति बालक अाकुल नाहे ॥२॥ गोट गोट सखी सभ गेलि वहाय । बजर कवाड़ पहु देलन्हि लगाय ॥ ४ ॥ तेहि अवसर पहु जागल कन्ते । चीर सम्भारलि जीउ भेल अन्ते ॥ ६ ॥ नहि नहि करे नयन ढर नारे । काँच कमला भमरा झिकझोरे ॥८ जइसे डगमग नलनिक नीरे । तइसे डगमग धनिक शरीरे ॥१०॥ भनइ विद्यापति सुनु कविराजे । आगि जारि पुनु भागिक काजे ॥१२