पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/८४

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७८ विद्यापति । = = == = = = सखी से सखी कथा । १५१ धनी बेयाकुलि कोमल कन्त । कोन परबोधव सखि परजन्त ॥२॥ सखी परबोधि सेज पर देल । पिया हरपि उठि कर धए लेल ॥४॥ । नहि नहि करय नयन चह नोर । सुति रहलि धनि सेजक और ॥६॥ । भनइ विद्यापति है जुवराज । सभ सञो वड़ थिक ऑखिकलाजा८॥ . सखी से सखी । १५२ सखी परबोधि शयन तले अनि । पिया हिय हरखधयल निज पानि ॥३॥ छुइते बाल मलिन भइ गेलि । बिधु कोरे कुमुदिनी मलिन भैलि ॥४॥ नहि नहि कह नयन झर नोर। शुति रहल राइ शयनक और ॥ ६ ॥ थालिङ्गय नबिवन्ध विनु खोरि । करे कुच परशे सेह भेल थोरि ॥ ८ ॥ आचर लेइ बदन पर फॉपे । थिर नहि होयत थर थर काँपे ॥१०॥ भनई विद्यापति धैरज सार । दिने दिने मदनक होय अधिकार ॥१२॥