पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/८५

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विद्यापति । ५५

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सखी । १५७ वामा चयन नयन बह नौर। कॉप कुरङ्गनि केसरि कोर ॥२॥ एके गह चिकुर दोसरे गह गम । तेसरे चिबुक चउठे कुच सीम ॥४॥ निवि चन्द फोएक नहि अवकास । पानि पचमके बाढलि आस ६॥ राधामाधव प्रथमक मेलि । न पुरल काम मनोरथ केले ॥८॥ भनइ विद्यापति प्रथमक रीति । दिने दिने वाला बुझति पिरीति ॥१०॥



सखी । १५८ । बारि विलासिनि आकुल कान्ह । मदन कौतुकिया हट्टल न मान ॥२॥ एके धनि पदुमिनि सहजहि छोटि । केरे धरइते करुणा कर कोटि ॥४॥ हठ परिरम्भणे नहि नहि चोल । हरि डरे हरिणी हरि हिये डोल ॥६॥ | नयनक अञ्चल चञ्चल भान । जागल मनमथ मुदित नयान ॥८॥ विद्यापति कह ऐसन रग । राधामाधव पहिलहि संग ॥१०॥ ji