पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/९८

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विद्यापति । ठूती । १७६. ए हरि माधव कि कहब तोय । अबला वध कए महत न होय ॥२॥ । केश उधसल टूटल हार । नख घाते विदारल पयोधर भार ॥४॥ दशनहि दुशल तुहु बनमारि । सिारस कुसुम हेरि कमलिन नारि ॥६॥' भनइ विद्यापति सुन बरनारि । आगिक दहने आगि प्रतिकारि ॥८॥ ठूती । जाति पदुमिनि सहति कता । गज दमसाल दमन लता ॥२॥ लोभे अधिक मूल न मार । जे मूल राखए से बनिज़ार ॥४॥ अछल जोर सिरीफल भाति । कएलह छोल नारङ्ग कति ॥ पात न कर लाथ । भूखल । नखा दुहु हथि ॥८॥