पृष्ठ:विनय पत्रिका.djvu/१३९

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विनय-पत्रिका १४२ प्रभावसे ) मूर्खताको त्यागकर जाग और श्रीहरिके साथ प्रेम कर । नित्यानित्य वस्तुका विचार करके, काम-क्रोधादि समत्त विकारोंको छोडकर कल्याणके समुद्र, दीनबन्धु, उदार श्रीरामचन्दजीका भजन कर, यही वेदकी आज्ञा है॥ १॥ मोहमयी अमावस्याकी लंबी रात्रिमें सोते हुए तुझे बहुत समय बीत गया और माया-खममें पड़- कर तू अपने अनुपम आत्मस्वरूपको भूल गया । देख, भत्र सवेरा हो गया है और ज्ञानरूपी सूर्यका प्रकाश होते ही, वासना, राग, मोह और द्वेषरूपी घोर अन्धकार दूर हो गया है ।। २ ।। प्रात.- काल हुआ समझकर गर्व और मानरूपी चोर भागने लगे तया काम, क्रोध, लोभ और क्षोभरूपी राक्षसोंके समूह अपने आप डर गये। श्रीरघुनायजीके प्रचण्ड प्रतापको देखते ही पाप-संताप नष्ट हो गये और तीन प्रकारके ताप श्रीरामजीके प्रेमरूपी जलने शान्त कर दिये ॥ ३ ॥ इस गम्भीर वाणीको कानोंसे सुनकर धीर-वीर संत मोह-निद्रासे जाग उठे और उन्होंने सुन्दर वैराग्य, संतोष आदिको आदरसे अपना लिया । हे तुलसीदास ! कृपामय श्रीरामचन्द्रजीने भक्त-जीवोंको व्याकुल देखकर ससाररूपी जाल तोड़ डाला और उन्हें परमानन्द प्रदान करने लगे ॥४॥ राग ललित [७५] खोटो खरोरावरोहोरावरी सौं, रावरे सो झूठ क्यों कहींगो, जानो सवहीके मनकी। करम-वचन-हिये, कहीं न कपट किये, ऐसी हठ जैसी गाँठि पानीपरे सनकी ॥१॥