पृष्ठ:विनय पत्रिका.djvu/१४

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विनय-पत्रिका जो गति मगममहामुनि दुर्लभ, कहत संत, श्रुति, सफल पुरान। सो गति मरन-फाल अपने पुर, देत सदासिव सहि समान ॥३॥ सेवत सुलभ उदार कलपतरा, पारबती-पति परम सुजान । देहु काम-रिपुराम-चरन-रति. तुलसिदास कहूँ कपानिधान ॥ ४॥ भावार्थ भगवान् शिवजीको छोड़कर और जिससे याचना की जाय ? आप दीनोंपर दया करनेवाले, भक्तोंक कष्ट हरनवाल और सब प्रकार से समर्थ ईश्वर हैं ।। १ ।। समुद्र-मन्यनके समय जब कार- कूट विषको बालासे सब देवता और राक्षस जल उठे, तब आप अपने दोनोंपर दया करनेके मणकी रक्षा के लिये तुरंत उस सियो पी गये। जब दारुण दानत्र त्रिपुरासुर जगतको बहत दुःख देने लगा, तब आपने उसको एक ही बाणसे मार डाला।॥ २॥ जिस परमगति- को सत-महात्मा, वेद और सब पुराण गहान् मुनियोंके लिय भी दुर्लभ बताते हैं, ऐसदागिन! यही परम गति कालीन गरनेपर गाद सभीयो रामान भाव देते हैं ॥३॥हे पार्यनीति गनुमान ! सेवा करनेपर आप सहज ही प्रा हो जाने हैं, अपक्षों समान मुहमोगा फल देनेवाले उदार आप कासगनभाव हे फनिधान ! तुलसीदाराको रामक परजी मीनिशीजिय॥५॥ सानी ? संकर- PAL दीनपाल दियाई भाआर. सोkh गारिक मार प्रन्यो जग. जात प्र म मारी। ना अ धिनियाsti. amil यो पर