पृष्ठ:विनय पत्रिका.djvu/२२

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२३ विनय-पत्रिका हुए पिङ्गलवर्ण जटाजूटका मुकुट है तथा भगवान् श्रीहरिके चरणोंसे 'पवित्र हुई गङ्गाजीका श्रोठ जल शोभित है । कानोंमें कुण्डल हैं; कण्ठमें हलाहल विष झलक रहा है। ऐसे करुणाकन्द सच्चिदानन्दस्वरूप, अवधूत वेष भगवान् शिवजीकी मैं वन्दना करता हूँ ॥ ३ ॥ आपके करकमलों में शूल, बाण, धनुष और तलवार है; शत्रुरूपी वनको भस्म करनेके लिये आप अग्निके समान हैं । बैल आपकी सवारी है। बाघ और हाथीका चमड़ा आप शरीरमे लपेटे हुए हैं । आप विज्ञान- घन हैं यानी आपके ज्ञानमें कहीं कभी अवकाश नहीं है तया आप सिद्ध, देव, मुनि, मनुष्य आदिके द्वारा सेवित हैं |॥ ४॥ आप ताण्डव-नृत्य करते हुए सुन्दरडमरूको डिमडिम-डिमडिम बजाते हैं, देखनेमें अशुभरूप प्रतीत होनेपर भी आप कल्याणकी खानि हैं। महाप्रलयके समय आप सारे ब्रह्माण्डको भस्म कर डालते हैं, कैलास आपका भवन है और काशीमें आप आसन लगाये रहते है ॥ ५॥ आप तत्त्वके जाननेवाले हैं, सर्वज्ञ हैं, यज्ञोंके स्वामी हैं, विभु (व्यापक) है, सदा अपने खरूपमें स्थित रहते है। हे पुरारि ! यह सारा विश्व आपके ही अंशसे उत्पन्न है। ब्रह्मा, इन्द्र, चन्द्र, सूर्य, वरुण, अग्नि, आठ वसु, उनचास मरुत और यम आपके चरणोंकी पूजा करनेसे ही सर्वाधिकारी बने हैं ॥ ६ ॥ आप कलारहित हैं, उपाधिरहित हैं, निर्गुण हैं, निर्लेप हैं, परब्रह्म हैं। कर्म-पथमें एक ही हैं । जन्मरहित और निर्विकार हैं। सारा विश्व आपकी ही मूर्ति है, आपका रूप बडा उन होनेपर भी आप मङ्गलमय हैं, आप देवताओंके खामी हैं, सर्वव्यापी हैं, संहारकर्ता होते हुए भी सबका उपकार करनेवाले हैं ॥७॥ हे शिव ! आप जिसपर अनुकूल होते हैं, उसको ज्ञान, वैराग्य, धन-