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पृष्ठ:विनय पत्रिका.djvu/२४

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२५. विनय-पत्रिका भस्म तनु-भूषणं, व्याघ्र चर्माम्बरं, उरग-नर-मौलिउरमालधारी। डाकिनी, शाकिनी, खेचरं, भूबरं यंत्र-मंत्र-भंजन, प्रबल कल्मपारी ॥६॥ काल-अतिकाल, कलिकाल,व्यालादि-खग, त्रिपुर-मर्दनः भीम कर्म भारी। सकललोकान्त-कल्पान्तशूलाग्रकृत दिग्गजाव्यक्त गुण नृत्यकारी॥ पाप-संताप-घनघोर संसृति दीनाभ्रमत जगयोनि नहि कोपित्राता। पाहि भैरव-रूपराम-रूपीरुद्र, बंधु,गुरु, जनक, जननी विधाता॥ यस्य गुण-गण गणति विमल मति शारदा, निगम नारद-प्रमुख ब्रह्मचारी। शेषासर्वेश, आसीन आनंदवन दास तुलसीप्रणत-त्रासहारी॥९॥ भावार्थ-हे भीषणमूर्ति भैरव ! आप भयङ्कर हैं । भूत, प्रेत और गणोंके स्वामी हैं। विपत्तियोंके हरण करनेवाले हैं। मोहरूपी चूहेके लिये आप बिलाव हैं; जन्म-मरणरूप संसारके भयको दूर करनेवाले हैं। सबको तारनेवाले, स्वयं मुक्तरूप और सबको अभय करनेवाले हैं ॥ १॥ आपका बल अतुलनीय है तथा अति विशाल शरीर औरवर्ण, निर्मल, उज्ज्वल और शेषनागकी-सी कान्तिवाला है । सिरपर सुन्दर पीले रंगका सौ करोड बिजलियोंके समान आभावाला जटाजूट शोभित हो रहा है ॥२॥ मस्तकपर मालाकी तरह विचित्र शोभावाली परम पवित्र जलमयी देवनदी गङ्गा विराजमान हैं। सुन्दर ललाटपर चन्द्रमाकी कमनीय कला शोभा दे रही है, ऐसे कुबेरके मित्र शिवजी- को मैं नमस्कार करता हूँ॥ ३ ॥ चन्द्रमा, अग्नि और सूर्य आपके नेत्र हैं; आप कामदेवका दमन करनेवाले हैं, गुणोंके भण्डार और