२८ विनय-पत्रिका बडा विकराल है; जो त्रिभु है और वेटोंसे अतीत हैं, जो करुणाकी खान हैं। गरलको ( कण्ठमें ) और गलाको ( मस्तकार ) धारण करनेवाले हैं। ऐसे निर्मल, निर्गुण और निर्विकार शिवजीको में नमस्कार करता हूँ॥ ३ ॥ जो लोकोंके स्वामी, गोक और शूलको | निर्मूल करनेवाले, त्रिशूलधारी तथा महान् मोहान्धकारको नाश करने. वाले सूर्य हैं। जो कालके भी काल है, कालातीत है, अजर है। आवागमनरूप ससारको हरनेवाले और कठिन कलिकालरूपी वनको जलानेके लिये अग्नि हैं ॥ ४ ॥ यह तुलसीदास उन तत्त्ववेत्ता, अज्ञान- रूपी समुद्रके सोखनेके लिये अगस्त्यरूप, सर्वान्तर्यामी, सब प्रकारके सौभाग्यकी जड़, जन्म-मरणरूप अपार संसारका नाश करनेवाले, शरणागत जनोंको सुख देनेवाले, सदा सानुकूल शिवजीकी शरण है||५| राग बसन्त [१३] सेवहु सिव-चरन-सरोज-रेनु । कल्याण-अखिल-प्रद कामधेनु ॥१॥ कर्पूर-गौर, करुना-उदार । संसार-सार, भुजगेन्द्र-हार ॥२॥ सुख-जन्मभूमि,महिमा अपार निर्गुन, गुननायक, निराकार ॥३॥ त्रयनयन,मयन-मर्दन महेस । अहँकार निहार-उदित दिनेस ॥४॥ बरवाल निसाकर मौलि प्राजा त्रैलोक-सोकहर प्रमथराज ॥५॥ जिन्ह कह विधिसुगतिन लिखीभाल।तिन्हकी गतिकासी पतिकपाल उपकारीकोऽपर हर-समान। सुर-असुर जरतकृतगरलपान ॥७॥ बहु कल्प उपायन करि अनेक। बिनु संभु-कृपणनहिंभव-बिबेक ॥८॥ विग्यान-भवन, गिरिसुता-रमनाकह तुलसिदास ममत्राससमन ॥ भावार्थ-सम्पूर्ण कल्याणके देनेवाली कामधेनुकी तरह शिवजी-
पृष्ठ:विनय पत्रिका.djvu/२७
दिखावट