पृष्ठ:विनय पत्रिका.djvu/३०८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

३१३ विनय-पत्रिका उद्धार क्यों नहीं करते?)॥२॥ अरे, ( उनको उद्धार करते देर ही क्या लगती है) अनेक जन्मोंकी विगडी हुई दशा सुधारनेमें उन्हें आधा पल भी नहीं लगता । 'हे कृपानिधान ! मेरी रक्षा कीजिये:- प्रेमसे इतना कहते ही ऐसा कौन पापी है जिसको श्रीरामचन्द्रजीने (सच्चा ) साधु नहीं बना दिया ॥ ३॥ वाल्मीकि और गुह निषादकी कया तथा सुग्रीव, हनुमान, शवरी, रीछ जाम्बवान् आदिके आदर-सत्कारकी बात सुनकर भी जो श्रीरामजीके शरण नहीं हुआ, उस ( मूर्ख) को कौन ज्ञानका उपदेश कर सकता है ? ॥ ४ ॥ सुग्रीवने कौन-सी सेवा की, और कौन-सी प्रीतिकी रीति निबाही थी ? ( राज्य पाकर वह तो श्रीरामजीके कार्यको भूल गया !) पर उसके भी भाई बालिको (अपने ऊपर कलंक लेकर भी) व्याधकी नाई मार डाला । इस प्रकार मारनेकी बात सुनकर (भक्तोंके अतिरिक्त और ) किसीको भी वह अच्छी नहीं लगती ॥ ५॥ विभीषणने कौन- सा भजन किया था; किन्तु रघुनाथजीने उसे उसके बदलेमें क्या फल दिया ? (लकाका महान् साम्राज्य और अपना अचल प्रेम ।) असलमे गरीवनिवाज श्रीरामचन्द्रजीको ( शरणागतके) रक्षा करनेके वचनकी बड़ी लाज है । ( शरण आये हुएके पिछले कर्मोकी ओर वे देखते ही नहीं)॥ ६॥ इसलिये तू रघुनाथजीका ही नाम जपा कर, दूसरी चर्चा ही न चलाया कर, क्योंकि सुन्दर, सुख देनेवाले, बुद्धिमान् समर्थ कृपासागर और शरणागतकी रक्षा करनेवाले खामी एक वही हैं ॥ ७॥ ऐसा कौन है जिसने ऑखोंमें ऑसू भरकर, गद्गद वाणीसे, प्रेमपूर्ण चित्तसे तथा पुलकित होकर श्रीरामचन्द्रजीकी गुणा- वलिका गान किया हो। और उसका सासारिक कष्ट (जन्म-मरण) नहीं