पृष्ठ:विनय पत्रिका.djvu/३७१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

३७६ विनय-पत्रिका ब्रह्म विसिरा नामांट दहन कम गर्म न नृपनि जग्यो। अजर-अमर, कुलिस नाहिन वध, सो पुनि फेन मरया ॥४॥ विप्र अजामिल अरु सुरपति ते फटा जो न निगरायो। उनको कियो सदाय बहुत, उरको संताप इलयो ॥५॥ गनिका अरु कंदरपते जगमो अघन करत उबरयो । तिनको चरित पवित्र जानि हरि निज प्रदि-भवन घरयो॥१॥ केहि आचरन भलो मान प्रभु सो तो न जानि परयो। तुलसिदास रघुनाथ-कृपाको जोवत पंथ परयो ॥ ७॥ भावार्थ-जिसे श्रीहरिने दृढ़तापूर्वक हृदयमे लगा लिया, वहीं सुशील है, पवित्र है, वेदका ज्ञाता है और समस्त विद्या एवं सद्गुणां- से भरा हुआ है (जिसपर भगवान् कृपा करते है, सारे सद्गुण अपना गौरव बढ़ानेके लिये उसके अंदर आप ही आ जाते है ) ॥१॥ पाण्डुके पुत्रोंकी उत्पत्ति और उनकी करतूतको सुनकर सन्मार्गतक डर गया था; किन्तु वे ही श्रीहरि-कृपासे तीनों लोकोंमे पूजनीय हो गये और उनका पवित्र यश सुन-सुनकर लोग तर गये ॥२॥ जिस राजा नृगने वेद-विहित खधर्मके पालनमें तनिक भी कसर नहीं की थी और जो बिना ही किसी दोषके गिरगिट होकर कऍमें पड़ा हुआ था, उसको आपने हाथ पकडकर बाहर निकाल दिया और उसका उद्धार कर दिया ( गिरगिटकी योनिसे छुड़ाकर दिव्यलोकको भेज दिया )॥ ३ ॥ सारे ब्रह्माण्डको भस्म कर देनेमें समर्थ ( अश्वत्थामाके ) ब्रह्मास्त्रसे भी राजा (परीक्षित) गर्ममें नहीं जला और अजर एव अमर ( नमुचि ) दैत्य जो वजसे भी नहीं मरा ण, वह फेनसे मर गया ॥ ४ ॥ अजामिल ब्राह्मण