पृष्ठ:विनय पत्रिका.djvu/३९९

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विनय-पत्रिका ४०४ इटा दिया तो फिर इसे और कहीं शरण न मिलेगी, क्योंकि अपनी मलाई चाहनेवाले तो प्रायः सभी हैं, किन्तु अपने दासोंका भला करनेवाला कोई विरला ही है। हे श्रीरामजी | सबका भला करनेवाले तो आपके चरण ही हैं, ( आपके चरणोंके आश्रयसे भले-बुरे सभीका कल्याण होता है ) ॥ १॥ पत्थरकी शिला (अहल्या), पशु (बंदर, रीछ ), पक्षी ( जटायु ), कोल-भील, राक्षस ( विभीषण ) आदिको हे कृपानिधान ! आपने कॉचसे सोना बना दिया ( विषयी थे जिनका मुक्त कर दिया)। दण्डक्रवनकी भूमि आपके चरणोंका स्पर्श होते ही पवित्र हो गयी और उखड़े हुए सूखे पेड फिर फलने-फूलने लगे ॥ २॥ आपका पतित-पावन नाम, जो आपसे विमुख हैं, उनका भी कल्याण करता है । (शत्रुभावसे भजनेवाले भी तर जाते हैं।) हे देव ! संसारमें असह्य दुःखों और पापोंका नाश करनेवाला आपको छोड़कर दूसरा कोई नहीं है। आप शीलके समुद्र हैं, अतएव आपसे नीची-ऊँची बात कहनेमें भी शोभा ही है ( अधिक क्या कहूँ)। तुलसीके दुःख दूर करनेवाले तो बस आप-सरीखे एक आप ही हैं (इसीसे शरण पड़ा हूँ)॥३॥ [२५८] जानि पहिचानि मैं विसारे हौं कृपानिधान ! एतो मान ढीठ हौं उलटि देत खोरि हो। करत जतन जासों जोरिवे को जोगीजन, तासों क्योंहु. जुरी, सो अभागो बैठो तोरि हौं। १ मोसो दोस-कोसको भुवन-कोस दूसरो न, आपनी समुझि सूझि आयो टकटोरि हो।