विनय-पत्रिका ४४० उनको समुद्रके ऊपर क्रोध हो आया और अपनी चोंचमें वाल भर- भरकर वे लगे समुद्रको भरनेकी चेष्टा करने । उसी अवसरपर अगस्त्य ऋषि कहीसे वहाँ आ निकले और पक्षियोंकी आदिशाको देखकर उनका हृदय दयासे द्रवित हो उठा। उन्होंने तत्काल ही उन्हे सान्त्वना देते हुए समुद्रको उठाकर ॐ राम' मन्त्रका उच्चारण तीन वार करते हुए आचमन कर लिया। फिर एक बूंद भी जल न बचा जिससे समस्त जलके जीव व्याकुल हो उठे। देवताओंके विनय करनेपर महर्पिने मूत्रद्वारा समुद्रको बाहर निकाल दिया । तभीसे समुद्र अपेय (खारा) हो गया। १५-असुर-नाशिनी- मार्कण्डेयपुराणमें महिषासुर, चण्ड-मुण्ड और शुम्भ-निशुम्भ- नामक प्रबल पराक्रमी तथा घोर कर्म करनेवाले दैत्योंकी कथा मिलती है । इनसे एक बार जब त्रिलोकी त्रस्त होकर त्राण पानेके लिये अति व्याकुल हो उठी तब सब देवताओंने ब्रह्मा, विष्णु और महेशके साथ भगवती महामाया आदि शक्तिकी स्तुति पर आह्वान किया। महामायाने प्रकट होकर इन असुरोंका सहार कर त्रिलोकीकी प्रजाके दुःखको दूर कर देवताओंको निर्भय किया । १७-भगीरथ-नंदिनी- सूर्यवंशमें सगर नामके महान् ऐश्वर्यशाली राजा हो गये हैं, उन्होंने ही समुद्रको खनवाया था। जिससे उसका नाम सागर पड़ा है। महाराज सगरकी दो रानियाँ थीं। एकसे अंशुमान् पैदा हुए और दूसरीसे साठ हजार पुत्र उत्पन्न हुए। महाराज सगरके प्रतापसे देवराज इन्द्र बहुत ही भयभीत रहता था और उनसे ईयो किया
पृष्ठ:विनय पत्रिका.djvu/४३५
दिखावट