परिशिष्ट करता था। महाराज सगरके अश्वमेधयज्ञके खच्छन्द विचरनेवाले घोड़ेको उसने चुराकर योगेश्वर कपिलमुनिके आश्रमपर बॉध दिया। उसे खोजनेके लिये सगरके साठ हजार पुत्र निकले और मुनिके आश्रमपर घोड़ेको बॉधा देख उन्हें कुवाच्य कहा। इससे क्रोधित हो मुनिने योगबलसे उन्हें भस्म कर दिया। महाराज अशुमान्के पुत्र भगीरथ हुए, उन्होंने महातप करके पतितपावनी श्रीगङ्गाजीको भूतलपर लाकर उन लोगोंका उद्धार किया । इसीसे श्रीगङ्गाजीको भागीरथी' या 'भगीरथ-नन्दिनी' आदि नामोंसे पुकारते है। जहनु-धालिका- जब महाराज भगीरथ गङ्गाजीको अपने रथके पीछे-पीछे भूलोकमें ला रहे थे, उस समय गङ्गाका प्रवाह जनु मुनिके आश्रमसे होकर निकला । मुनि ध्यानावस्थित थे, प्रवाहको आते देख उन्होंने उसे उठाकर पी लिया। पीछे महाराज भगीरथने उनकी स्तुति कर उनको प्रसन्न किया। तब मुनिने जंगत्के हितार्थ गङ्गाजीकोअपने जघेसे निकाल दिया। तभीसे गङ्गाजीका नाम 'जहनु-सुता', 'जाह्नवी' पडा। १८-त्रिपुरारिसिरधामिनी- जब महाराज भगीरथने ब्रह्मलोकसे गङ्गाजीको प्राप्त कर लिया तब यह कठिनाई सामने आयी कि यदि गङ्गाकी धारा वहाँसे सीधे भूलोकपर गिरेगी तो उससे भूलोक जलमग्न हो जायगा । इसलिये उन्होने भव-भय-हारी भगवान् शङ्करकी स्तुति की और शङ्करजीने ब्रह्मलोकसे अवतरित होती हुई गङ्गाकी धाराको अपने जटाजालमें रोक लिया। इसीसे श्रीगङ्गाजीको त्रिपुरारि (शिव) के मस्तकमें निवास करनेवाली कहा जाता है ।
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