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पृष्ठ:विनय पत्रिका.djvu/४३७

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विनय-पत्रिका - २२-करनघंट- काशीमें एक ब्राह्मण शिवका बड़ा ही अनन्य भक्त था। वह शिवके सिवा और किसी देवताका नाम भी नहीं सुनना चाहता था। इसलिये उसने अपने दोनों कानोंमे दो घण्टे लटका रक्खे थे, जिससे किसी दूसरे देवताका नाम कानों में न आने पावे। कोई मनुष्य यदि उसके सामने किसी अन्य देवताका नाम लेता तो वह घण्टा बजाते हुए दूर भाग जाता। इसी कारण उसका नाम 'करनघण्ट' पड़ गया था। वह जिस स्थानपर रहता था, वह स्थान आज भी कर्णघण्टाके नामसे पुकारा जाता है। २४--विधिहरिहर-जनमे- चित्रकूटमें महर्षि अत्रि और उनकी परम साध्वी पतिव्रता स्त्री अनसूया रहती थी। दोनों पुरुष-स्त्रीने पुत्रकी कामनासे अति कठोर तप किया और ब्रह्मा, विष्णु और महादेव तीनों नामोसे पुकार-पुकारकर भगवान्की स्तुति की, तब भगवान् तीनों रूपमें प्रकट हो गये और वर माँगनेके लिये कहा । अनसूयाने यह वर माँगा कि मेरे गर्भसे तुम्हारे समान पुत्र हों। त्रिदेव 'तथास्तु' कहकर अन्तर्धान हो गये। पीछे ब्रह्माने चन्द्रमाके रूपमें, विष्णुने दत्तात्रेयके रूपमे और शिवने दुर्वासाके रूपमें जन्म लिया । २५ --उदित-चंड-कर-मंडल-ग्रासकर्ता-- वाल्मीकि रामायणमें कथा आती है कि एक दिन प्रातःकाल अमावस्याके दिन हनूमान्जीको बहुत भूख लगी थी। उन्होंने उगते हुए लाल रंगके बाल सूर्यको देखा और फल समझकर उनके ऊपर वे लपके और एक ही झटकेमें पकडकर निगल गये। दैवात् उस