पृष्ठ:विनय पत्रिका.djvu/४३९

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- - विनय-पत्रिका हनूमान्जीने ही उनसे भेंट की तथा उनको ले जाकर सुग्रीवसे मिलाया और उनमे पारस्परिक मैत्री स्थापन की। यही मंत्री वालिवधका कारण हुई । इसीसे बालिके यधमें मुख्य हेतु श्रीहनूमान्- जी माने जाते हैं। सिंहिका-मद-मथन- सिंहिका नामकी एक राक्षसी समुद्र में रहती थी। उस मार्ग से जो जीव आकाशमें जाते थे, उनकी परछाई जलमें देखकर वह उनको पकड लेती थी और खा जाती थी। जब हनूमान्जी सीताकी खोजमें आकाग-मार्गसे लका जाने लगे तो उस राक्षसीने उनके साथ भी वही व्यवहार करना चाहा। परन्तु हनूमान्जा उसकी चालको समझ गये और उसको एक ही मुहि-प्रहारके द्वारा परलोक भेज दिया। दसकंठ-घटकरन, चारिद-नाद-कदन-कारन--- राम-रावण-युद्धके समय जब रावण युद्धमें विजय प्राप्त करनेके लिये अजेय यज्ञका अनुष्ठान करने लगा तो इसकी सूचना विभीषणने श्रीरामकी सेनामें दी और कहा कि यदि रावण इस अनुष्ठानमें सफल हो गया तो उसको मारना फिर अत्यन्त कठिन हो जायगा । इसलिये उसके यज्ञको विध्वंस करना चाहिये । श्रीहनूमान्जीने इस कार्यका भार अपने ऊपर लिया और वे वानरोंकी एक सेना लेकर वहाँ पहुँच गये तथा उस यज्ञको विध्वंस कर दिया। इसके पश्चात् रावण युद्ध-भूमिमें लडनेके लिये आया और मारा गया । इस प्रकार श्रीहनूमान्जी उसकी मृत्युके कारण बने । कुम्भकर्णको रणमें बलरहित करने में भी हनूमान्जी ही कारण थे।