पृष्ठ:विनय पत्रिका.djvu/५

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पद-संख्या [८] पद-सूचना पद-संख्या पद-सूचना जिव जबतें हरित विलगान्यो १३६ , ताँबे सो पीठि मनहुँ तन पायो २०० जैसो हौं तैसो राम रावरो... २७१ | तुम अपनायो तब जानिहौं २६८ जो अनुराग न रामसनेही सों १९४ | तुम जनि मन मैलो करो ... २७२ जो तुम त्यागो राम हौं तौ नहिं १७७ | तुम तजि हौं कासों कहौं ... २७३ जो पै कृपा रघुपति कृपालुकी १३७ | तुमसम दीनबंधु, नदीन कोउ २४२ जो पै चेराई रामकी ... १५१ तू दयालु, दीन हौ .. ७९ जो पै जानकिनाथ सों ... १९२ ते नर नरकरूप जीवत जग १४० जो पै राम-चरन रति होती १६८ | तोसों प्रभुजोपै कहूँ कोउहोतो१६१ जो मन लागै रामचरन अस २०४ | तोसो हों फिरि फिरि हित १३३ जो मोहि राम लागते मीठे १६९ । तौ तू पछितैहै मन मीजि हाथ ८४ जो पै जिय जानकी-नाथ न जाने२३६ | तौ हौं बार-बारप्रभुहि पुकारिकै२५० जो पै दूसरो कोउ होइ ." २१७ दनुज-वन-दहन, गुन-गहन ४९ जो पैहान रामसों नाही . १७५ दनुजसूदन, दयासिंधु ... ५६ लगन दानी कहुँ सकर-सम नाहीं . ४ जो पैजिय धरिहौ अवगुन जनके ९६ | द्वार द्वार दीनता कही ... २७५ जो निज मन परिहरै विकारा १२४ द्वार हौ भोर ही को आजु २१९ जौ पै हरि जनके औगुन गहते ९७ दीन-उद्धरण रघुवर्य ... जोमन भज्योचहै हरिसुरतरु २०५! दीनको दयालु दानि ... ७८ ज्यों-ज्यों निकट भयो चहौं २६६ दीनदयालु दिवाकर देवा .. २ तऊ न मेरे अघ-अवगुन गनिहैं ०५ / | दीनदयालु, दुरित दारिद दुख १३९ तन सुचिमनरुचिःमुख कहाँ २६५ दीनबधु । दूरि किये तब तुम मोहूसे सठनिको .. २४१ / दीनबंधु दूसरो कह पावों ? २३२ ___... २५७ ताकि है तमकि ताकी ओर को ३१ / दीनबंधु, सुखसिंधु वातें हौं बार-बार देव । "१३४ | दुसह दोष-दुख दलनि ... १५ नाहित आयो सरन सबेरें १८७ ' देखो देखो बन बन्यो ...