७८ विनय-पत्रिका दासतुलसी चरण सरण संशय-हरण, देहि अवलंब वैदेहि-भर्ता ॥९॥ भावार्थ-श्रीरामचन्द्रजीकी जय हो-जो राज-राजेश्वरोंमें इन्द्रके समान हैं, जिनके नेत्र कमलके समान सुन्दर हैं, जिनका नाम कलियुगमें कल्पवृक्षके समान है, जो (शरणागत भक्तोंको) सान्त्वना देनेवाले ( ढाढस बंधानेवाले ) हैं, अनीतिरूपी समुद्रको सोखनेके लिये जो अगस्त्य ऋषिके समान और दानव-दलरूपी गाढ़ और भयानक अन्धकारका नाश करनेके लिये जो प्रचण्ड सूर्यके समान हैं ॥१॥ श्रीरामचन्द्रजीकी जय हो । मुनि, देवता और मनुष्यों के खामी जिन दशरथसूनु श्रीरामचन्द्रजीने अवधवासियोंको ऐसा श्रेष्ठ बना दिया कि मुनि और देवता भी उनकी वन्दना करने लगे। जो लोकपालरूपी चकवोंके शोकसन्तापका नाश करनेवाले और सूर्यकुल- रूपी कमलोंके वनको प्रफुल्लित करनेवाले साक्षात् सूर्य हैं ॥२॥ श्रीरामचन्द्रजीकी जय हो-सौन्दर्यरूपी सरोवरमें उत्पन्न हुए नीले कमलोंकी मालाके समान जिनके शरीरकी आभा है, जो सम्पूर्ण दिव्य गुणोंके धाम हैं, सारे विश्वका हित करनेवाले हैं और समस्त सौभाग्य, सौन्दर्य तथा परम शोभायुक्त अपने रूपसे करोडों कामदेवोंके गर्वको खर्व करनेवाले हैं ॥ ३ ॥ श्रीरामचन्द्रजीकी जय हो-जो सुन्दर शाङ्ग- धनुष, तरकस, बाण, शक्ति, ढाल, तलवार और श्रेष्ठ कवच धारण किये हैं, धर्मका भार उठानेमें जो धीर हैं, जो रघुवंशमें सर्वश्रेष्ठ वीर हैं, जिनकी प्रचण्ड भुजाओंका अतुलनीय बल है और जिन्होंने खेलसे ही राक्षसोंका नाश करके पृथ्वीका भारी भार हरण कर लिया ॥४॥ श्रीरामचन्द्रजीकी जय हो-जो मणि-जडित सुवर्णका मुकुट मस्तकपर लोकपालरूपानको प्रफुल्लित रूपी सरोबरमें सम्पूर्ण दिन
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