पृष्ठ:विनय पत्रिका.djvu/८१

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13 विनय-पत्रिका सर्वदानंद-संदोह, मोहापह, घोर-संसार-पाथोधि-पोतं ॥५॥ शोक-संदेह-पाथोदपटलानिलं, पाप-पर्वत-कठिन-कुलिशरूपं । संतजन-कामधुक-धेनु, विधामप्रद,नाम कलि कलुप-भंजन अनूपं ॥ धर्म-कल्पद्रुमाराम, हरिधाम-पथि संबलं, मूलमिदमेव एकं। भक्ति-वैराग्य-विज्ञान-शम-दान-दम, नाम, आधीन साधन अनेकं ॥ तेन तप्तं, हुतं. दत्तमेवाखिलं तेन सर्व कृतं कर्मजालं। येन श्रीरामनामामृतंपानकृतमनिशमनवद्यमवलोक्य कालं ॥ ८॥ श्वपच, खल, भिल्ल, यवनादि हरिलोकगत, नामवल विपुल मति मल न परसी। त्यागि सव आस, संत्रास, भवपास. असि निसित हरिनाम जपुदासतुलसी ॥९॥ भावार्थ-रे मूर्ख मन ! सदा-सर्वदा बार-बार श्रीरामनामका ही जप कर, यह सम्पूर्ण सौभाग्य-सुखकी खानि है और यही वेदका निचोड़ है । ऐसा जीमे समझकर और पूर्ण विश्वास करके सदाश्रीरामनाम कहा कर ॥ १ ॥ कोशलराज श्रीरामचन्द्रजीके शरीरकी कान्ति नवीन नील कमलके समान है, वे कामदेवको भस्म करनेवाले शिवजीके हृदयरूपी कमलमे रमनेवाले भ्रमर हैं । वे जानकीरमण, सुखधाम अखिल विश्वके एकमात्र प्रभु, समरमें दुष्टोंका नाश करनेवाले और परम दयाल है॥२॥ वेदानवोंके वनके लिये अग्निके समान है। पुष्ट और घुटनों- तक लंबे भुजदण्डोंमें सुन्दर धनुष और प्रचण्ड बाण धारण किये हैं। उनके हाथ, चरण, मुख और नेत्र लाल कमलके समान कमनीय हैं। वे सद्गुणोंके स्थान और अनेक कामदेवोंकी सुन्दरताके भण्डार हैं॥ ३ ॥ विविध वासनारूपी कुमुदिनीका नाश करनेके लिये साक्षात् सूर्य और