सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/१०९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

६५-पाटिदेसनिय' ( २२२-२६) आर्याओ ! यह आठ पाटिदेसनिय दोप कहे जाते हैं- (१) खानेकी चीजको खास तौरसे माँगकर खाना १--जो भिक्षुणी नीरोग होते हुए माँगकर घी खाये उसे प्रतिदेशना करनी चाहिये-"आर्ये ! मैंने निन्दनीय, अयुक्त, प्रतिदेशना करने योग्य कार्य किया। सो मैं उसकी प्रतिदेशना करती हूँ।" २–जो कोई भिक्षुणी नीरोग होते हुए दहीको माँगकर खाये, उसे० । ३–जो कोई भिक्षुणी नीरोग होते हुए तेलको माँगकर खाये, उसे० । ४-जो कोई भिक्षुणी नीरोग होते हुए मधुको माँगकर खाये, उसे । ५–जो कोई भिक्षुणी नीरोग होते हुए मक्खनको माँगकर खाये, उसे० । ६–जो कोई भिक्षुणी नोरोग होते हुए मछलीको माँगकर खाये, उसे० । ७-जो कोई भिक्षुणी नीरोग होते हुए मांसको माँगकर खाये, उसे० । ८-जो कोई भिक्षुणी नीरोग होते हुए दूधको माँगकर खाये, उसे० । आर्याभो ! यह आठ पाटिदेसनिय दोष कहे गये। आर्याओंसे पूछती हूँ-क्या (आप लोग ) इनसे शुद्ध हैं ? दूसरी बार भी पूछती हूँ -क्या शुद्ध हैं ? तीसरी बार भी पूछती हूँ-क्या शुद्ध हैं ? आर्या लोग शुद्ध हैं, इसीलिये चुप हैं-ऐसा मैं इसे धारण करती हूँ। पाटिदेसनिय समाप्त ॥५॥ १ तुलना करो भिक्खु-पातिमोक्ख, पाचित्तिय ६५ । ३९ ( पृष्ट २६ ) । अपराध स्वीकार पूर्वक क्षमायाचना पाटिदेसनिय कहा जाता है । ६६ ] [ ६५।१-८