सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/१११

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

६८ ] भिक्खुनी-पातिमोक्ख [ ६६।२१-५२ २१–घरमें न कमरपर हाथ रखकर जाऊँगी- २२–घरमें न कमरपर हाथ रखकर बैलूंगी-। २३.-घरमें न अवगुंठित हो ( सिर ढाँके ) जाऊँगी-। २४-घरमें न अवगुंठित हो ( सिर ढाँके ) वैलूंगी- २५-घरमें न पंजोंके बल जाऊँगी- २६–घरमें न पालथी मारकर बैलूंगी-। (३) भिक्षान्न ग्रहण और भोजन २७-भिक्षान्नको सत्कार पूर्वक ग्रहण करूँगी- २८-(भिक्षा ) पात्रकी ओर ख्याल रखते भिक्षान्नको ग्रहण करूँगी-०। २९-(अधिक नहीं ) मात्राके अनुसार सूप ( = तेमन )वाले भिक्षान्नको ग्रहण करूँगी-०। ३०-(पानसे उभरे नहीं ) समतल भिक्षान्नको ग्रहण करूँगी- (इति) खम्भक वग्ग ॥३॥ ३१ -सत्कारके साथ भिक्षान्नको खाऊँगी–०। ३२-(भिक्षा ) पात्रकी अोर ख्याल रखते भिक्षान्नको खाऊँगी- ३३–एक ओरसे भिक्षान्नको खाऊँगी-०। ३४-मात्राके अनुसार सूपके साथ भिक्षान्नको खाऊँगी-०। ३५-पिंड ( स्तूप )को मीज मींजकर नहीं भोजन करूँगी- ३६-अधिक दाल या भाजीकी इच्छासे (व्यंजन)को भातसे नहीं ढाँकूगी- ३७-नीरोग होते अपने लिये दाल या सातको माँगकर नहीं भोजन करूँगी-। ३८-न अवज्ञाके ख्यालसे दूसरोंके पात्रको देवूगी--० । ३९-न वहुत बड़ा ग्रास बनाऊँगी-01 ४०-ग्रासकों गोल वनाऊँगी-०। (इति) सकञ्च-वग्ग ॥४॥ ४१–ग्रासको विना मुँह तक लाये मुखके द्वारको न खोलूँगी- ४२-भोजन करते समय सारे हाथको मुँहमें न डालूँगी-०। ४३-ग्रास पड़े हुए मुखसे वात नहीं करूँगी-०। ४४–ग्रास उछाल उछालकर नहीं खाऊँगी-०। ४५–ग्रासको काट काटकर नहीं खाऊँगी- ४६-न गाल फुला फुलाकर खाऊँगी-। ४७-न हाथ भाड़ झाड़कर खाऊँगी-। ४८-न जूठ विखेर बिखेरकर खाऊँगी-०। ४९-न जीभ चटकार चटकार कर खाऊँगी- ५०-न चपचप करके खाऊँगो- (इति) कवळ-वग्ग ॥५॥ ५१-न सुड़सुड़कर खाऊँगी- ५२-न हाथ चाट चाटकर खाऊँगी-०। -01