पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/१३५

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९० ] ३-महावग्ग [ १६१।१४ उस बन-खण्डको पूर्णतया प्रकाशित करते, जहाँ भगवान् थे, वहाँ आये । आकर भगवान्को अभिवादन कर महान् अग्नि-समूहकी भाँति चारों दिशाओं में खळे हो गये। तब जटिल उगवेल काश्यप उस रातके बीत जानेपर जहाँ भगवान् थे, वहाँ गया। जाकर भगवान्से यह बोला- "महाश्रमण ! (भोजनका) काल है। भात तैयार है। महाश्रमण ! इस प्रकाशमान रात्रि को बळे ही प्रकाशमान् वह कौन थे, जोकि इस वन-खण्डको पूर्णतया प्रकाशित कर, जहाँ तुम थे, वहाँ आये । आकर तुम्हें अभिवादन कर महान् अग्नि-समूहकी भाँति चारों दिशाओंमें खळे हो गये?" "काश्यप ! यह चारों म हा रा जा थे, जो मेरे पास धर्म सुननेके लिये आये थे।" तब जटिल उरुवेल काश्यपके (मनमें) हुआ-"महाश्रमण बड़ी दिव्यशक्तिवाला= महानुभाव है, जिसके पास कि चारों महाराजा धर्म सुननेके लिये आते हैं । तो भी यह वैसा अर्हत् नहीं है, जैसा कि मैं।" तब भगवान् जटिल उरुवेल काश्यपके भातको खाकर उसी वन-खंडमें विहार करने लगे। ३–तृ ती य प्रा ति हा र्य–तव एक प्रकाशमान् रात्रिको पहलोंके प्रकाशसे(भी)अधिक प्रकाशमान्, अधिक उत्तम, अति दीप्तिमान् देवोंका इन्द्र श क उस वन-खंडको पूर्णतया प्रकाशित करता जहाँ भगवान् थे, वहाँ गया। जाकर भगवान्को अभिवादनकर महान् अग्नि-समूहकी भाँति एक ओर खड़ा हो गया। तव जटिल उरुवेल काश्यप उस रात के वीत जानेपर, जहाँ भगवान् थे, वहाँ गया। जाकर भग- वान्से यह बोला-“महाश्रमण ! (भोजनका) काल है। भात तैयार है। महाश्रमण ! इस प्रकाश- मान् रात्रिको पहलोंके प्रकाशसे अधिक प्रकाशमान्, अधिक उत्तम, अति प्रकाशमान् कौन इस वन- खंडको पूर्णतया प्रकाशित करते आकर तुम्हें अभिवादन कर महान् अग्नि-समूहकी भाँति एक ओर ! खड़ा हुआ था?" ! "काश्यप ! वह देवोंका इन्द्र शक था जो मेरे पास धर्म सुननेके लिये आया था।" तव जटिल उरुवेल काश्यपके ( मनमें ) हुआ-"महाश्रमण वळी दिव्यशक्तिवाला- महानुभाव है जिसके पास कि देवोंका इन्द्र शक्र धर्म सुनने के लिये आता है; तो भी यह वैसा अर्हत् नहीं हैं, जैसा कि मैं।" तब भगवान् जटिल उरुवेल काश्यपके भातको खाकर उसी वन-खंडमें विहार करने लगे। ४-च तु र्थ प्रा ति हा र्य--तब एक प्रकाशमान् रात्रिको अति प्रकाशमय स हा (लोक- समूह)का पति ब्रह्मा उस वन-खंडको पूर्णतया प्रकाशित करता, जहाँ भगवान् थे, वहाँ गया। जाकर भग- वान्को अभिवादनकर एक ओर खळा हुआ। तब जटिल उरुवेल काश्यप उस रातके बीत जानेपर, जहाँ भगवान् थे, वहाँ गया। जाकर भग- वान्से यह बोला- "महाश्रमण ! (भोजनका) काल है। भात तैयार है। महाश्रमण ! इस प्रकाशमान् रात्रिको वळाही प्रकाशमान वह कौन था जोकि इस वन-खंडको पूर्णतया प्रकाशितकर, जहाँ तुम थे, वहाँ आकर तुम्हें अभिवादनकर महान् अग्नि-समूहकी भाँति एक ओर खळा हुआ ?" "काश्यप ! वह सहाका पति ब्रह्मा था जो मेरे पास धर्म सुननेके लिये आया था ।" तव जटिल उरुवेल काश्यपके ( मनमें ) हुआ-"महाश्रमण बळी दिव्यशक्तिवाला- महानुभाव है, जिसके पास कि सहापति ब्रह्मा धर्म सुननेके लिये आता है। तौभी यह वैसा अर्हत् नहीं है जैसा कि मैं।" तब भगवान् जटिल उरुवेल काश्यपके भातको खाकर उसी वन-खंडमें विहार करने लगे।