सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/१३६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१०१।१८ ] उरुवेलामें चमत्कार [ ९१ भगवान् उ रु वे ल का श्य प जटिलके आश्रमके समीपवर्ती एक वन-खंडमें...उस्वेल काश्यपका दिया भोजन ग्रहण करते हुए, विहार करने लगे। ५-पं च म प्रा ति हा र्य-उस समय उरुवेल-काश्यप जटिलको एक महायज्ञ आ उपस्थित हुआ; जिसमें सारेके सारे अंग-म ग ध-निवासी बहुतसा खाद्य भोज्य लेकर आनेवाले थे। तव उरु- वेल काश्यपके चित्तमें (विचार) हुआ-"इस समय मेरा महायज्ञ आ उपस्थित हुआ है, सारे अंग- मगधवाले बहुतसा खाद्य भोज्य लेकर आयेंगे। यदि महाश्रमणने जन-समुदायमें चमत्कार दिखलाया, तो महाश्रमणका लाभ और सत्कार बढ़ेगा मेरा लाभ सत्कार घटेगा। अच्छा होता यदि महाश्रमण कल (से) न आता ।" भगवान्ने उरुवेल-काश्यप जटिलके चित्तका वितर्क (अपने) चित्तसे जान, उत्तर कुरु जा, वहाँसे भिक्षान्न ले अ न व तप्त सरोवरपर भोजनकर, वहीं दिनको विहार किया। उरुवेल- काश्यप जटिल उस रातके बीत जानेपर, भगवान्के. . .पास जा...वोला-"महाश्रमण ! (भोजनका) समय है, भात तैयार हो गया। महाश्रमण ! कल क्यों नहीं आये? हम लोग आपको याद करते थे- क्यों नहीं आये ? आपके खाद्य-भोज्यका भाग रक्खा है।" "काश्यप ! क्यों ? क्या तेरे मनमें (कल) यह न हुआ था, कि इस समय मेरा महायज्ञ आ उपस्थित हुआ है. महाश्रमणका लाभसत्कार वढेगा? इसीलिये काश्यप ! तेरे चित्तके वितर्कको (अपने) चित्तसे जान, मैंने उत्तरकुरु जा, अनवतप्त सरोवरपर० वहीं दिनको विहार किया।" तव उरुवेल-काश्यप जटिलको हुआ-"महाश्रमण महानुभाव दिव्य-शक्तिधारी है, जोकि (अपने) चित्तसे (दूसरेका) चित्त जान लेता है। तो भी यह (वैसा) अर्हत् नहीं है, जैसा कि मैं।" तव भगवान्ने उरुवेल-काश्यपका भोजन ग्रहणकर उसी वन-खंडमें (जा) विहार किया।... ६-प प्ठ प्रा ति हा र्य-एक समय भगवान्को पांसुकूल ३ (=पुराने चीथड़े) प्राप्त हुए। भगवान्के दिल में हुआ,-"मैं पांसु-कूलोंको कहाँ धोऊँ ।" तव देवोंके इन्द्र श क ने, भगवान्के चित्तकी वात जान . हाथसे पुष्करिणी खोदकर, भगवान्से कहा-“भन्ते ! भगवान् ! (यहाँ) पांसुकूल धोवें ।" तव भगवान्को हुआ-"मैं पाँसुकूलोंको कहाँ उपयूँ ।" इन्द्रने... (वहाँ) वळी भारी शिला डाल दी...। तब भगवान्को हुआ-"मैं किसका आलम्ब ले (नीचे) उतरूँ?". . .इन्द्रने...शाखा लटका दी...1 ! मैं पांमुकूलोंको कहाँ फैलाऊँ ?...इन्द्रने...एक वळी भारी शिला डालदी...। उस रातके बीत जानेपर, उरुवेल-काश्यप जटिलने, जहाँ भगवान् थे, वहाँ पहुँच, भगवान्से कहा-“महाश्रमण ! (भोजनका) समय है, भात तैयार हो गया है। महाश्रमण ! यह क्या? यह पुष्करिणी पहिले यहाँ न थी ! ...। पहिले यह शिला (भी) यहाँ न थी; यहाँपर शिला किसने डाली ? इल ककुध (वृक्ष) की शाखा (भी) पहिले लटकी न थी, सो यह लटकी है।" "मुझे काश्यप ! पांसुकूल प्राप्त हुआ०..." उरुवेल-काश्यप जटिलके (मनमें) हुआ-“महाश्रमण २ मानसरोवर झील। १ मेरुपर्वतकी उत्तर दिशामें अवस्थित द्वीप। रास्ता या कूळोपर फेंके चीथळे ।