९२ ] ३-महावग्ग [ १६१।१४ दिव्य-शक्ति-धारी है ! महा-आनुभाव-वाला है...। तो भी यह वैसा अर्हत् नहीं है, जैसा कि मैं।" भगवान्ने उरवेल-काश्यपका भोजन ग्रहणकर, उसी वन-खंडमें विहार किया। ७--सप्त म प्रा ति हा र्य-तव जटिल उ रु वे ल-का श्य प उस रातके बीत जानेपर, जहाँ भगवान् थे, वहाँ गया । जाकर भगवान्से कालकी सूचना दी-"महाश्रमण (भोजनका) काल है। भात तैयार है ।" "काश्यप ! चल में आता हूँ" '-कह जटिल उरुवेल-काश्यपको भेजकर, जिस जम्बू (=जामुन) के कारण यह ज म्बू-द्वी प कहा जाता है, उससे फल लेकर (काश्यपसे) पहले ही आकर अग्निशालामें बैठे। जटिल उरुवेल-काश्यपने भगवान्को अग्निशालामें बैठे देखकर कहा- "महाश्रमण किस रास्तेसे तुम आये। में तुमसे पहिले ही चला था लेकिन तुम मुझसे पहिले ही आकर अग्निशालामें बैठे हो?" "काश्यप ! मैं तुझे भेजकर जिस जम्बू (जामुन) के कारण यह जम्बू-द्वीप कहा जाता है; उससे फल ले पहिले ही आकर मैं अग्निशालामें बैठ गया। काश्यप यह वही (सुन्दर) वर्ण, रस, गन्ध युक्त जम्बू फल है। यदि चाहता है तो खा।" "नहीं महाश्रमण! तुम्हीं इसे लाये, तुम्हीं इसे खाओ।" तव जटिल उरुवेल काश्यपके मनमें हुआ-"महाश्रमण बळी दिव्य-शक्ति-वाला-महा- नुभाव है, जोकि मुझे पहिले ही भेजकर जिस जम्बू (=जामुन) के कारण यह जम्बू-द्वीप कहा जाता है, उससे फल लेकर मुझसे पहिले ही (आकर) अग्निशालामें बैठा। तो भी यह वैसा अर्हत् नहीं है जैसा कि मैं।" तब भगवान् जटिल उरुवेल काश्यपके भातको खाकर उसी वन-खंडमें विहार करने लगे । ८-१०--अष्ट म्, न व म, द श म प्रा ति हा र्य-तव जटिल उरुवेल काश्यप उस रातके बीतनेपर जहाँ भगवान् थे वहाँ गया। जाकर भगवान्को कालकी सूचना "महाश्रमण ! (भोजनका) काल है। भात तैयार है।" "काश्यप चल ! मैं आता हूँ।"- (कहकर) जटिल उरुवेल-काश्यपको जिस जम्बूके कारण यह जम्बू-द्वीप कहा जाता है उसके समीपके आम० । ० आँवला० । हरॆ । ११-ए का द श म प्रा ति हा र्य-तब जटिल उरुवेल काश्यप उस रातके बीतने पर जहाँ भगवान् थे वहाँ गया। जाकर भगवान्को कालकी सूचना दी- "महाश्रमण ! (भोजनका) काल है। भात तैयार है।" "काश्यप ! चल मैं आता हूँ।"--(कहकर) व य स्त्रि श (देव-लोक) में जाकर पारिजात पुष्पको ले (काश्यपसे) पहिले ही आकर अग्निशालामें बैठे। जटिल उरुवेल काश्यपने भगवान्को अग्नि- शालामें (पहलेही) वैटे देखकर यह कहा- "महाश्रमण ! किस रास्तेसे तुम आये, मैं तुमसे पहिले ही चला था, लेकिन आकर अग्निशालामें बैठे हो ?" "काश्यप ! मैं तुझे भेजकर त्र य स्त्रिंश (देव-लोक) में जाकर पारिजात पुष्पको ले पहले ही आकर अग्निशालामें बैठा हूँ। काश्यप ! यही वह (सुन्दर) वर्ण और गन्ध युक्त पारिजातका दी- । तुम मुझसे पहिलेही पुप्प है।" तव जटिल उरुवेल काश्यपके (मनमें) यह हुआ---"महाश्रमण दिव्य शक्तिवाला= महा- नुभाव है जो कि मुझे पहलेही भेजकर त्रयस्त्रियं (देव लोक) जा पारिजातके फूलको ले पहिले ही आकर अग्निशालामें बैठा है; तो भी यह वैसा अर्हत नहीं है जैसा कि मैं ।
पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/१३७
दिखावट