पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/१३८

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११।१५ ] काश्यप-बंधुओंकी प्रव्रज्या १२–द्वा द श म प्रा ति हा र्य-उस समय जटिल ( =जटाधारी वाणप्रस्थ साधु ) अग्निहोत्र के लिये लकळी (फाळते वक्त) फाळ न सकते थे। तव उन जटिलोंके (मनमें) यह हुआ- "निस्संशय यह महाश्रमणका दिव्य-बल है, जोकि हम काठ नहीं फाळ सकते हैं।" तव भगवान् जटिल उरुवेल काश्यपसे यह वोले- "काश्यप! फाळी जायँ लकळियाँ ?" "महाश्रमण ! फाळी जायँ लकळियाँ।" और एक ही वार पाँच सौ लकळियाँ फाळदी गई। तब जटिल उरुवेल काश्यपके मनमें यह हुआ—“महाश्रमण दिव्यशक्तिवाला=महानुभाव है जोकि लकळियाँ फाळी नहीं जा सकती थीं। तो भी यह वैसा अर्हत् नहीं है जैसा कि मैं।" १३-त्र यो द श म प्रा ति हा र्य-उस समय जटिल अग्नि-परिचर्याके लिये (जलाते वक्त) आगको न जला सकते थे । तव उन जटिलोंके (मनमें) यह हुआ- "निस्संशय यह महाश्रमणका दिव्य-बल है जो हम आग नहीं जला सकते हैं।" तव भगवान्ने जटिल उरुवेल काश्यपसे यह कहा- "काश्यप! जल जावे अग्नि ?" "महाश्रमण ! जल जावे अग्नि ।" और एक ही वार पाँच सौ अग्नि जल उठी० । १४--च तुर्द श म प्रा ति हा र्य -उस समय जटिल परिचर्या करके आगको वुझा नहीं सकते थे। उस समय वह जटिल हेमन्तकी हिम-पात वाली चार माघके अन्त और चार फाल्गुनके आरम्भकी रातोंमें ने रंज रा नदीमें डूवते उतराते थे, उन्मज्जन, निमज्जन करते थे। तव भगवान्ने पाँच सौ अँगीठियाँ (योगवलसे) तैयार की, जहाँ निकलकर वे जटिल तापें । तब उन जटिलोंके मनमें यह हुआ-"निस्संशय० ।” १५ –पं च द श म प्रा ति हा र्य-एक समय वळा भारी अकालमेघ बरसा । जलकी वळी बाढ़ आगई। जिस प्रदेशमें भगवान् विहार करते थे, वह पानीसे डूब गया। तव भगवान्को हुआ- "क्यों न मैं चारों ओरसे पानी हटाकर, वीचमें धूलियुक्त भूमिपर चंक्रमण करूँ (टहलू)?" भगवान् धूलि-युक्त भूमिपर टहलने लगे। उरुवेल-काश्यप जटिल-"अरे ! महाश्रमण जलमें डूब न गया होगा !!" (यह सोच) नाव ले, वहुतसे जटिलोंके साथ जिस प्रदेशमें भगवान् विहार करते थे, वहाँ गया। (उसने). . .भगवान्को. . .धूलि-युक्त भूमिपर टहलते देखा। देखकर भगवान्से वोला-"महाश्रमण ! यह तुम हो?" "यह मैं हूँ" कह भगवान् आकाशमें उळ, नावमें आकर खळे हो गये। तव उरुवेल-काश्यप जटिलको हुआ-"महाश्रमण दिव्य-शक्ति-धारी है, हो ! किन्तु यह वैसा अर्हत नहीं है, जैसा कि मैं ।" तव भगवान्को (विचार) हुआ-"चिरकाल तक इस मूर्ख (=मोघपुरुष) को यह (विचार) होता रहेगा-कि महाश्रमण दिव्य-शवितधारी है; किन्तु यह वैसा अर्हत् नहीं है, जैसा कि मैं । क्यों न मैं इस जटिलको फटकारूँ ?" तव भगवान्ने उग्वेल-काश्यप जटिलसे कहा-"काश्यप ! न तो तू अर्हत् है, न अर्हत्के मार्गपर आरूढ़। वह नूझ भी तुझे नहीं है, जिससे अर्हत् होवे, या अर्हत्के मार्गपर आरूढ़ होवे।" (१५) काश्यप-बंधुओं को प्रव्रज्या (तव) उरवेल-काश्यप जटिल भगवान्के पैरोंपर गिर रख, भगवान्ने बोला-"भन्ते ! पानी हटाकर