! १०४ ] ३-महावग्ग [ १२३ लिये तथा प्रसन्नोंमेंसे भी किसी किसीको उलटा देनेके लिये है।" तब भगवान्ने उन भिक्षुओंको अनेक प्रकारसे धिक्कारकर. . .संबोधित किया- "भिक्षुओ! शिष्योंको उपाध्यायके साथ बेठीक बर्ताव नहीं करना चाहिये । जो बेठीक बर्ताव करे उसे दुक्क ट (-दुष्कृ त) का दोप हो।" (ख) (तव भी) ठीकसे नहीं वर्तते थे। (भिक्षुओंने) भगवान्से यह बात कही। (भग- वान्ने कहा)-- "भिक्षुओ! बेठीक बर्ताव करनेवाले (शिप्यको) हटा देनेकी अनुमति देता हूँ।"6 "और इस प्रकार भिक्षुओ! हटाना चाहिये।—'तुझे हटाता हूँ'; 'मत फिर तू यहाँ आना'; या 'ले जा अपना पात्र-चीवर'; या 'मत तू मेरी सुश्रुपा करना'- '--इस प्रकार शरीरसे या वचनसे सूचित करनेपर वह शिष्य हटा समझा जाता है। (यदि) न कायासे, न वचनसे, न काय-वचनसे सूचित करे तो शिष्य हटाया नहीं समझा जाता।" २-उस समय शिष्य हटाये जानेपर क्षमा याचना नहीं करते थे । भगवान्से इस बातको (भिक्षुओंने) कहा। (भगवान्ने कहा)- "भिक्षुओ! क्षमा करानेकी अनुमति देता हुँ।"7 (तो भी) नहीं क्षमा कराते थे। भगवान्से यह बात कही। (भगवान्ने कहा)- "भिक्षुओ! हटाये हुए (शिष्यको) न क्षमा कराना योग्य नहीं; जो न क्षमा कराये उसे दुक्क ट का दोष हो।"8 ३-(क) उस समय क्षमा करानेपर भी उ पा ध्या य क्षमा नहीं करते थे। भगवान्से यह बात कही। (भगवान्ने कहा- "भिक्षुओ ! क्षमा करनेकी अनुमति देता हूँ।"9 (ख) तो भी नहीं क्षमा करते थे; (जिससे) शिष्य चले जाते थे, या गृहस्थ हो जाते थे, या अन्य मतवालोंके पास चले जाते थे। भगवान्से यह बात कही। (भगवान्ने कहा)- "भिक्षुओ! क्षमा माँगनेपर न क्षमा करना उचित नहीं। जो न क्षमा करे उसको दुक्क ट का दोष हो।"10 ४-उस समय उपाध्याय ठीकसे बर्ताव करनेवाले (शिष्य) को हटाते थे और वेठीकसे वर्ताव करनेवालेको नहीं हटाते थे। भगवान्से यह बात कही। (भगवान्ने कहा)- (क) “भिक्षुओ! ठीकसे वर्ताव करनेवालेको नहीं हटाना चाहिये। जो हटावे उसको दुक्कटका दोप हो। और भिक्षुओ! वेठीकसे बर्ताव करनेवालेको न हटाना योग्य नहीं; जो न हटावे उसे दुक्क ट का दोप हो।"II (ख) "भिक्षुओ! पाँच बातोंसे युक्त शिष्यको हटाना चाहिये-(१) उपाध्यायमें अधिक प्रेम नहीं रखता; (२) उपाध्यायमें अधिक श्रद्धा नहीं रखता; (३) अधिक लज्जाशील (=लज्जी) नहीं होता; (४) अधिक गौरव नहीं करता और (५) अधिक (ध्यान आदिकी) भावना नहीं करता। भिक्षुओ! इन पाँच वातोंसे युक्त शिप्यको हटाना चाहिये।"12 (ग) “भिक्षुओ ! पाँच वातोंसे युक्त शिष्यको नहीं हटाना चाहिये--(१) उपाध्याय, अधिक प्रेम रखता है; (२) उपाध्यायमें अधिक श्रद्धा रखता है; (३) अधिक लज्जाशील होता है; (४) अधिक गौरव करता है; और (५) अधिक (ध्यान आदिकी) भावना करता है। भिक्षुओ! इन पांच वातोंसे युक्त शिप्यको नहीं हटाना चाहिये।" 13 (घ) “भिक्षुओ! पाँच बातोंसे युक्त शिप्य हटाने योग्य है-(१) उपाध्यायमें अधिक प्रेम 1
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