0 १७२।४ ] उपाध्यायके कर्तव्य [ १०५ नहीं रखता; ० (५) अधिक भावना नहीं करता। 14 (ङ) “भिक्षुओ! पाँच बातोंसे युक्त शिष्य हटाने योग्य नहीं है-(१) उपाध्यायमें अधिक प्रेम रखता है; ० (५) अधिक भावना करता है। 15 (च) “भिक्षुओ! पाँच वातोंसे युक्त शिप्यको न हटानेपर उपाध्याय दोपी होता है; और हटानेपर निर्दोष होता है--(१) उपाध्यायमें अधिक प्रेम नहीं रखता; ० (५) अधिक भावना नहीं करता है0116 (छ) "भिक्षुओ! पाँच बातोंसे युक्त शिष्यको हटानेपर उपाध्याय दोपी होता है और न हटानेपर निर्दोष होता है-(१) उपाध्यायमें अधिक प्रेम रखता है; (५) अधिक भावना करता है।"17 (४) तोन शरणासे प्रव्रज्या उस समय.. ब्राह्मण रा ध ने भिक्षुओंके पास साधु बनना चाहा । भिक्षुओंने (उसे) साधु न बनाना चाहा । वह...प्रव्रज्या न पानेसे दुर्वल, रूखा, दुर्वर्ण, पीला हाळ-हाळ-निकला होगया। .. । भग- वान्ने उस ब्राह्मणको देख...भिक्षुओंको संबोधित किया--"भिक्षुओ! इस ब्राह्मणका उपकार किसी को याद है?" ऐसे कहनेपर आयुष्मान् सा रि पुत्र ने भगवान्से कहा-“भन्ते ! मैं इस ब्राह्मणका उपकार स्मरण करता हूँ।" “सारिपुत्र! इस ब्राह्मणका क्या उपकार तू स्मरण करता है?" "भन्ते ! मझे रा ज गृह में भिक्षाके लिये घूमते समय, इस ब्राह्मणने कलछीभर भात दिल- वाया था। भन्ते मैं इस ब्राह्मणका यह उपकार स्मरण करता हूँ।" “साधु ! साधु ! सारिपुत्र ! सत्पुरुप कृतज्ञ कृतवेदी (होते हैं)। तो सारिपुत्र! तू (ही) इस ब्राह्मणको प्रवजित कर, उपसम्पादित कर।" "भन्ते ! कैसे इस ब्राह्मणको प्रवजित करूँ, (कैसे) उपसम्पादित करूँ ?" तव भगवान्ने इसी सम्बन्धमें इसी प्रकरणमें धर्मसम्वन्धी कथा कह भिक्षुओंको सम्वो- धित किया- "भिक्षुओ! मैंने जो तीन शरण-गमनसे उपसम्पदाकी अनुमति दी थी, आजसे उसे मन्सूख करता हूँ। (आजसे ती न अन श्रा व णों और) चौथी ज्ञ प्ति वाले क र्म के साथ उपसम्पदाकी अनुमति देता हूँ।18 इस तरह. . .उपसम्पदा करनी चाहिये-~योग्य समर्थ भिक्षु संघको ज्ञापित करे-- क. ज्ञप्ति-"भन्ते ! संघ मुझे सुने; 'अमुक नामक, अमुक नामके आयुप्मान्का उम्मेदवार (-उपसंपदापेक्षी) है। यदि संघ उचित समझे, तो संघ अमुक नामकको, अमुक नामकके उपाध्यायत्त्वमें उपसम्पन्न करे।--यह अप्ति है । ख. अनु श्रा व ण (१) “भन्ते ! संघ मुझे सुने; अमुक नामक, अमुक नामके आयुप्मान्का उपसम्पदापेक्षी है। संघ अमुक नामकको अमुक नामकके उपाध्यायत्त्वमें उपसम्पन्न करता है। जिस आयुप्मान्को अमुक नामककी उपसंपदा अमुक नामक उपाध्यायत्त्वमें स्वीकार है, वह चुप रहे, जिनको स्वीकार न हो, वह वोले । 9 यहाँ नाम लेना चाहिये।
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