पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/१५५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१ ११० ] ३-महावग्ग [ १९३३१ करवा, उकळू बैठवा, हाथ जोळवा, ऐसा कहना चाहिये-'भन्ते ! मेरे आचार्य बनिये। आयुप्मान्के आश्रयसे मैं रहूँगा, भन्ते ! मेरे आचार्य बनिये, ० भन्ते ! मेरे आचार्य बनिये ० ।' यदि (आचार्य) वचनसे 'ठीक है,' 'अच्छा है', 'युक्त है', 'उचित है', या 'सुन्दर रीतिसे करो', कहे; या कायासे मूचित करे, या काय-वचनसे सूचित करे तो वह आचार्यके तौरपर ग्रहण किया गया । यदि न कायासे मूत्रित करता है, न बचनसे सूचित करता है, न काय-वचनसे सूचित करता है, तो उसका आचार्यके तौरपर ग्रहण नहीं होगा। "भिक्षुओ! शिष्यको आचार्यके साथ अच्छा बर्ताव करना चाहिये ( ५ ) अाचार्यका कर्तव्य आचार्यको शिष्यके साथ अच्छा बर्ताव करना चाहिये ०१ । छठा भाणवार (समाप्त) ॥६॥ (१०) निश्रय टूटनेके कारण उस समय शिष्य आचार्यके साथ अच्छी तरह न वर्तते थे इससे जो अल्पेच्छ, संतुष्ट, लज्जा- शील, संकोची, शिक्षा चाहने वाले ० ।' पाँच वातोंसे युक्त शिप्यको हटानेपर उपाध्याय दोपी होता है, और न हटानेपर निर्दोष होता है ० । उस समय भिक्षु अचतुर., और अजान होते हुए भी 'हम दस वर्पके हैं ऐसा सोच (दूसरेकी) उपसंपदा करते थे और शिष्य पंडित देखे जाते थे और आचार्य अबूझ ० ।' उस समय शिष्य आचार्य और उपाध्यायके चले जानेपर, विचार-परिवर्तन करलेनेपर या मर जानेपर या दूसरे पक्षमें चले जानेपर भी नि थ य (=शिष्यता) के खतम होनेकी वातको नहीं जानते थे। (भिक्षुओंने) यह वात भगवान्से कही। भगवान्ने कहा ।- १--"भिक्षुओ ! यह पाँच वातें हैं जिनसे उपाध्यायसे नि श्र य टूट जाता है- (१) उपाध्याय (भिक्षु आश्रमसे) चला गया हो; (२) विचार-परिवर्तन करलिये हो; (३) मर गया हो (४) दूसरे पक्षमें चला गया हो; (५) स्वीकृति दे गया हो। भिक्षुओ ! यह पाँच बातें हैं जिनसे उपाध्यायमे निश्रय टूट जाता है। 26. २--"भिक्षुओ ! यह छ बातें हैं जिनसे आचार्यसे निश्रय टूट जाता है-(१) आचार्य आश्रमसे चला गया हो; (२) विचार-परिवर्तन करलिये हो; (३) मर गया हो; (४) ) दूसरे पक्षमें चला गया हो; (५) स्वीकृति दे गया हो; (६) उपाध्यायने समाधान कर दिया हो। भिक्षुओ ! यह छ । । 27 ६३-उपसम्पदा और प्रव्रज्या (१) उपसम्पदा देने और न देने योग्य गुरु १--भिक्षुओ ! इन पाँच वातोंसे युवत भिक्षुको (दूसरेकी)न उपसंपदा करानी चाहिये, न निश्रय देना चाहिये, न श्रामणेर बनाकर रखना चाहिये-(१) न (वह) संपूर्ण शील (=सदाचार)- पुंजसे युक्त होता है; (२) न संपूर्ण समाधि-पुंजसे युक्त होता है; (३) न संपूर्ण प्रज्ञा-पुंजसे संयुक्त होता है; (४) न संपूर्ण विमुक्ति (=राग द्वेपादिका परित्याग)-पुंजसे युक्त होता है; (५) न संपूर्ण विमुक्तियोंके ज्ञानके साक्षात्कारके पुंजसे संयुक्त होता है। भिक्षुओ! इन पांच बातोंसे ० 128 ! १ देखो पृष्ठ १०३-४ ।