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पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/१५६

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१७३।१] शिष्यके कर्तव्य [ १११ २-"भिक्षुओ! इन पाँच वातोंसे युक्त भिक्षुको (दूसरेकी) उपसंपदा करनी चाहिये, निश्रय देना चाहिये, श्रामणेर बनाकर रखना चाहिये-(१) (वह) संपूर्ण शील (=सदाचार)-पुंजसे युक्त होता है ०; (५) संपूर्ण विमुक्तियोंके ज्ञानके साक्षात्कार-पुंजसे संयुक्त होता है। भिक्षुओ ! इन पाँच ! बातोंसे ० । 29 ! -"और भी भिक्षुओ! इन पाँच वातोंसे युक्त भिक्षुको (दूसरेकी)न उपसंपदा करनी चाहिये, न निश्रय देना चाहिये, न श्रामणेर बनाकर रखना चाहिये-(१) न (वह) स्वयं संपूर्ण शीलपुंजसे युक्त होता है, न दूसरेको संपूर्ण शील-पुंजकी ओर प्रेरित करनेवाला होता है; (२) न स्वयं संपूर्ण समाधि- पुंजले संयुक्त होता है, और न दूसरेको संपूर्ण समाधि-जकी ओर प्रेरित करता है, (३) न स्वयं संपूर्ण प्रज्ञापुंजसे संयुक्त होता है, न दूसरेको संपूर्ण प्रज्ञा-पुंजकी ओर प्रेरित करता है, (४) न स्वयं संपूर्ण वि मुक्ति-पुंजसे युक्त होता है, और न दूसरेको संपूर्ण विमुक्ति-पुंजकी ओर प्रेरित करता है, (५) न स्वयं संपूर्ण विमुक्तियोंके ज्ञानके साक्षात्कारके पुंजसे युक्त होता है, न दूसरेको संपूर्ण विमुक्तियोंके ज्ञानके साक्षात्कारके पुंजकी ओर प्रेरित करता है। 30 -"भिक्षुओ! इन पाँच बातोंसे युक्त भिक्षुको (दूसरेकी) उपसंपदा करनी चाहिये, निश्रय देना चाहिये, श्रामणेर बनाकर रखना चाहिये-(१) (वह) संपूर्ण शील-पुंजसे युक्त होता है ० ; (५) संपूर्ण विमुक्तियोंके ज्ञानके साक्षात्कारके पुंजसे संयुक्त होता है । भिक्षुओ ! इन पाँच बातोंसे ० । 3I ५-"और भी भिक्षुओ ! पाँच बातोंसे युक्त भिक्षुको न उपसंपदा करनी चाहिये ०--(१) अश्रद्धाल होता है; (२) लज्जा-रहित होता है, (३) संकोच-रहित होता है; (४) आलसी होता है; (५) भूल जानेवाला होता है। भिक्षुओ! इन पाँच वातोंसे युक्त। 32 ६--"भिक्षुओ ! पाँच वातोंसे युक्त भिक्षुको उपसंपदा करनी चाहिये -(१) श्रद्धालु होता है; (२) लज्जालु होता है; (३) संकोचशील होता है; (४) उद्योगी होता है; (५) याद रखने वाला होता है । भिक्षुओ! इन पाँच वातोंसे युक्त ० । 33 -"और भी भिक्षुओ ! पाँच वातोंसे युक्त भिक्षुको न उपसंपदा करनी चाहिये -(१) शीलसे हीन होता है; (२) आचारसे हीन होता है; (३) बुरी धारणावाला होता है; (८) विद्या- हीन होता है; (५) प्रज्ञाहीन होता है । भिक्षुओ! इन पाँच वातोंसे युक्त ० । 34 --"भिक्षुओ ! पाँच वातोंसे युवत भिक्षुकी उपसंपदा करनी चाहिये (१) शीलसे हीन नहीं होता; (२) आचारसे हीन नहीं होता; (३) वुरी धारणावाला नहीं होता; (४) विद्यावान् होता है; (५) प्रज्ञावान् होता है। भिक्षुओ! इन पाँच वातोंसे युक्त ० । 35 '.-"और भी भिक्षुओ ! पाँच वातोंसे युक्त भिक्षुको न उपसंपदा करनी चाहिये -(१) बीमार गिप्य या अन्तेवासीकी सेवा करने या करानेमें समर्थ नहीं होता; (२) (मनके) उचाटको हटाने या हटवाने में समर्थ (नहीं) होता; (३) (मनके) उत्पन्न खटकेको दूर करने कराने में (नहीं) समर्थ होता; (४) दोष (अपराध) को नहीं जानता; (५) दोपसे शुद्ध होनेको नहीं जानता। भिक्षुशो! इन पांच वातोंसे युक्त ० 1 36 १०-"भिक्षुओ ! इन पाँच वातोंसे युक्त भिक्षुको उपसंपदा करनी चाहिये -(?) वीमार शिप्य या अन्तेवासीकी सेवा करने या करानेमें समर्थ होता है ० (५) दोपसे शुद्ध होना जानता है । भिक्षुझो ! इन पांच वातोंसे युक्त ० 1 37 ११-"और भी भिक्षुओ ! पांच वातोंसे युक्त भिक्षुको न उपसंपदा करनी चाहिये ०–नहीं नमय होता (१) गिप्य या अन्लेवानीको आचार विषयक सीख सिखलानेमें; (२) शुद्ध ब्रह्मचर्यकी शिक्षामें ले जाने में; (३) धर्म की ओर (=अभिधम्मे) ले जानेमें; (४) विनय की ओर (= O ! O-