पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/१५८

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१९३२ ] उपसम्पादक गुरु [ ११३ "भिक्षुओ ! जो वह पहले दूसरे साधु-संप्रदायमें रहा (शिष्य) उपाध्यायके धर्म-संबंधी वात कहनेपर उपाध्यायके साथ विवाद करके उसी संप्रदायमें चला गया फिर आनेपर उसकी उपसंपदा न करनी चाहिये, और भिक्षुओ! जो कोई ऐसा पहले दूसरे साधु-संप्रदायमें रहा (पुरुष) इस धर्ममें प्रवज्या या उपसंपदा पानेकी प्रार्थना करता है, उसे चार महीनेका परि वा स देना चाहिये। 59 "भिक्षुओ ! (परिवास) इस प्रकार देना चाहिये----पहिले दाढी, मूंछ मुळवाकर, कापाय वस्त्र पहना एक कंधेपर उत्तरासंघको करवा भिक्षुओंके चरणोंकी वंदना करवा, उकळू वैठवा, हाथ जोळवा 'ऐसा कहो' कहना चाहिये-बुद्धकी शरण जाता हूँ, धर्मकी शरण जाता हूँ, संघकी शरण जाता हूँ '। दूसरी वार भी ० । तीसरी बार भी-~-'बुद्धकी शरण जाताहूँ, धर्मकी शरण जाता हूँ, संघकी शरण जाता हूँ। "भिक्षुओ! उस पहले दूसरे संप्रदायमें रहे (पुरुष) को संघके पास जाकर एक कंधेपर उपरना रख भिक्षुओंके चरणोंकी वंदनाकर उकळू बैठ, हाथ जोळ ऐसे याचना करानी चाहिये- या च ना-'भन्ते ! मैं (इस नामवाला) पहले दूसरे साधु-संप्रदायमें रहा (अब) इस धर्ममें उपसंपदा पाना चाहता हूँ; सो मैं भन्ते ! संघके पास चार महीनोंका परि वा स चाहता हूँ। दूसरी वार भी०। तीसरी बार भी-'भन्ते ! मैं (इस नामवाला) पहले अन्य साधु-संप्रदायमें रहा (अव) इस धर्ममें उपसंपदा पाना चाहता हूँ; सो मैं भन्ते ! संघके पास चार महीनोंका परिवास चाहता हूँ।' “(तव) योग्य, समर्थ भिक्षु संघको ज्ञापित करे- (क) ज्ञप्ति-'भन्ते ! संघ मेरी सुने! यह अमुक नामवाला, पहले अन्य साधु-संप्रदाय में रहा (अव) इस धर्ममें उपसंपदा पाना चाहता है; और संघसे चार मासका परिवास चाहता है । ख. अनु श्रा व ण-(१) ० संघ इस नामवाले पहिले दूसरे साधु-संप्रदायमें रहे (इस पुरुष) को चार मासका परिवास देता है । जिस आयुष्मान्को इस नामवाले पहले अन्य साधु-संप्रदायमें रहे, (इस पुरुष) को चार मासका परिवास दिया जाना स्वीकार है वह चुप रहे जिसको स्वीकार न हो वह वोले। (२) (दूसरी वार भी०) । (३) (तीसरी वार भी०) । ग. धा र णा--"संघने इस नामवाले पहिले अन्य साधु-संप्रदायमें रहे (इस पुरुप)को चार मामका परिवास दे दिया, संघको स्वीकार है, इसलिये चुप है-ऐसा समझता हूँ।' ( ख ) ठीक न होने लायक "भिक्षुओ! इस प्रकारसे पहिले अन्य साधु-संप्रदायमें रहा (पुरुप) साध्य होता है, और इस प्रकार असाध्य।" क. कैने भिक्षुओ! पहिले-दूसरे-साधुसंप्रदायमें रहा (पुरुष) अनाराधक होता है ? (१) "भिक्षुओ! जो पहिले-दूसरे-साधु-संप्रदायमें रहा (पुरुष) अतिकालमें गाँवमें जाता है, और वहुत दिन विताकर निकलता है। इस प्रकार भी भिक्षुओ ! पहिले-दूसरे-साधु-संप्रदायमें रहा (अन्य-तीर्थिक-पूर्व) अनाराधक होता है । (२) "और फिर भिक्षुओ! वेश्याकी-आँख-पळेवाला होता है, विधवाकी-आँखपळेवाला होता है, बळी-उम्रकी-कुमारिकाकी आँख-पळेवाला होता है, नपुंसककी-आँख-पळेवाला होता है, भिक्षुणीकी-आंग्व-पळेवाला होता है। इस प्रकार भी भिक्षुओ ! अन्य ती थि क पूर्व, अनाराधक (= अनाध्य)। (३) “और फिर भिक्षओ ! अन्य ती थि क पूर्व, गुरु-भाइयोंके छोटे-वळे जो काम हैं, उनके कारनेमें दक्ष, आलसरहित नहीं होता। उनके विषयमें उपाय और सोच नहीं करता, न करने में समर्थ, नवीकने विधान करने में समर्थ होता है। ऐसे भी भिक्षुओ० । !