पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/१६७

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१२२ ] ३-महावग [ १७३।११ वर्षसे अधिकका भिक्षु होता है। ० 1 90 -० निश्रयके बिना नहीं रहना चाहिये--(१) अ-श्रद्धालु होता है; (२) लज्जा-रहित होता है; (३) संकोच-रहित होता है; (४) आलसी होता है; (५) भूल जानेवाला होता है; (६) पाँच वर्षसे कमका भिक्षु होता है। ० 1 91 6-० निश्रयके विना रहना चाहिये--(१) श्रद्धालु होता है; (२) लज्जालु होता है; (३) संकोच-शील होता है; (४) उद्योगी होता है; (५) याद रखने वाला होता है; (६) पाँच वर्षसे अधिक- का भिक्षु होता है। ० 192 ण-० निश्रयके विना नहीं रहना चाहिये--(१) शीलहीन होता है; (२) आचारहीन होता है; (३) धारणाके विषयमें बुरी धारणावाला होता है; (४) विद्याहीन होता है; (५) प्रज्ञाहीन होता है; (६) पाँच वर्षसे कमका भिक्षु होता है। 0 1 93 त-० निश्रयके विना रहना चाहिये-(१) शीलहीन नहीं ०; (६) पाँच वर्षसे अधिक का भिक्षु होता है। ० । 94 थ-~० निश्रयके विना नहीं रहना चाहिये-(१) न दोपको जानता है; (२) न निर्दोपता- को जानता है; (३) न छोटे दोषको जानता है; (४) न वळे दोपको जानता है; (५) (भिक्षु-भिक्षुणी) दोनोंके प्रातिमोक्षोंको विस्तारके साथ नहीं हृद्गत किये रहता, सूक्त (=बुद्धोपदेश) और प्र मा ण से प्रातिमोक्षको न सु-विभाजित किये रहता, न सु-प्रवर्तित, न सु-निर्णीत किये रहता; (६) पाँचवर्पने कमका भिक्षु होता है। ० 195 द-० निश्रयके बिना रहना चाहिये-(१) दोषको जानता है; (६) पाँच वर्षसे अधिक- का भिक्षु होता है। ० 196 o अष्टम भाणवार समाप्त ॥८|| ई-कपिलवस्तु (११) प्रव्रज्याके लिये माता-पिताको आज्ञा (क) राहुल की प्रव्र ज्या---तब भगवान् राजगृहमें इच्छानुसार विहार करके कपिलवस्तु- की ओर विचरण करनेके लिये चल दिये। क्रमशः विचरण करते जहाँ कपिलवस्तु है वहाँ पहुँचे। और भगवान् वहाँ शाक्य (-देश) में क पि ल व स्तु के न्य गोधा रा म में विहार करते थे। भगवान् पूर्वाह्न समय पहनकर पात्र-चीवर ले जहाँ शुद्धो द न शाक्यका घर था, वहाँ गये। जाकर विछाये आसनपर बैठे। तव रा हु ल - माता-देवीने रा हु ल - कुमारको यों कहा-"राहुल ! यह तेरे पिता हैं, जा दायज (-वरासत) माँग।" तव राहुल-कुमार जहाँ भगवान् थे, वहाँ गया। जाकर भगवान्के सामने खळा हो कहने लगा- "श्रमण ! तेरी छाया सुखमय है।" तव भगवान् आसनसे उठकर चल दिये। राहुलकुमार भी भगवान्के पीछे पीछे लगा- "श्रमण ! मुझे दायज दे, श्रमण ! मुझे दायज दे।" तव भगवान्ने आयुष्मान् सारिपुत्रसे कहा "तो सा रि पुत्र! राहुल-कुमारको प्रवृजित करो।" 'भन्ते! किस प्रकार राहुल-कुमारको प्रबजित करूँ ?" इसी मौकेपर इसी प्रकरणमें धार्मिक कथा कहकर, भगवान्ने भिक्षुओंको संबोधित किया- (ख) श्रामणे र व ना ने की विधि-"भिक्षुओ ! तीन शरण-गमनसे श्रामणेर-प्रवज्या-