पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/१६८

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१७३।१२ ] श्रामणेरोंके विषयमें [ १२३ की अनुज्ञा देता हूँ। इस प्रकार प्रवृजित करना चाहिये । पहिले शिर-दाढी मुंळवा कापाय-वस्त्र पहिना, एक कंधेपर उपरना करवा, भिक्षुओंकी पाद-वन्दना करवा, उकळं बेठवा, हाथ जोळवा ऐसा कहो वोलना चाहिये--"वुद्धकी शरण जाता हूँ, धर्मकी शरण जाता हूँ, संघकी शरण जाता हूँ। दूसरी वार भी० । तीसरी बार भी बुद्धकी शरण ।" 97 तव आयुष्मान् सारिपुत्रने राहुल-कुमारको प्रबजित किया। तव शुद्धो द न शाक्य जहाँ भगवान् थे, वहाँ गया; और भगवान्को अभिवादन कर, एक ओर बैठ गया। एक ओर बैठे हुए शुद्धोदन शाक्यने भगवान्से कहा- "भन्ते ! भगवान्ले मैं एक वर चाहता हूँ।" "गौतम ! तथागत वरसे दूरहो चुके हैं।" "भन्ते ! जो उचित है, दोष-रहित है।" "वोलो गौतम !" "भगवान्के प्रवजित होनेपर मुझे बहुत दुःख हुआ था, वैसेही नन्द (के प्रबजित) होनेपर भी। राहुल के (प्रवजित) होनेपर अत्यधिक । भन्ते ! पुत्र-प्रेम मेरी छाल छेद रहा है। छाल छेदकर० । चमड़ेको छेदकर मांसको छेद रहा है। मांसको छेदकर नसको छेद रहा है । नसको छेदकर हड्डीको छेद रहा है । हड्डीको छेदकर घायल कर दिया है। अच्छा हो, भन्ते ! आर्य (=भिक्षुलोग) माता पिताकी अनुमतिके विना (किसीको) प्रव्रजित न करें।" (ग) मा ता - पिता की आज्ञा से प्र व ज्या-भगवान्ने शुद्धोदन शाक्यसे धार्मिक कथा काही....। तव शुद्धोदन शाक्य....आसनसे उठ अभिवादनकर प्रदक्षिणाकर चला गया। भगवान्ने इसी मौकेपर, इसी प्रकरणमें धार्मिक कथा कह, भिक्षुओंको संबोधित किया—“भिक्षुओ! माता पिताकी अनुमतिके बिना, पुत्रको प्रजित न करना चाहिये। जो प्रबजित करे, उसे दुक्कटका दोष है ।" 98 (१२) श्रामणेरों के विषयमें नियम (क) श्रामणेरों की संख्या-तब भगवान् क पि ल व स्तु में इच्छानुसार विहारकर श्रावस्तीमें विचरणके लिये चल दिये । क्रमशः विचरण करते जहाँ श्रावस्ती है वहाँ पहुँचे और भगवान् वहाँ श्रावस्तीमें अना थपिं डि क के आराम जेतवनमें विहार करते थे। उस समय आयुष्मान् सारिपुत्रके सेवक एक खान्दानने आयुष्मान् सा रि पुत्र के पास (अपने) बच्चेको (यह कहकर) भेजा—'इस बच्चेको स्थविर प्रव्रज्या दें।' तव आयुप्मान् सारिपुत्रके (मनमें) ऐसा हुआ-भगवान्ने आज्ञा दी है कि एक (भिक्षु) को दो श्रामणेर न रखने चाहिये और मेरे पास यह राहुल श्रामणेर है ही । मुझे क्या करना चाहिये ?' उन्होंने भगवान्से वात कही। (भगवान्ने कहा)- "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ, चतुर और समर्थ एक भिक्षुको भी दो श्रामणेर रखनेकी, या जिननोंको वह उपदेश और अनुशासन कर सके उतनोंके रखनेकी।" 99 (ख) श्रामणे रों के शिक्षा पद-तव श्रामणेरोंके (मनमें) यह हुआ—'हम लोगोंके कितने शिक्षा - प द (आचार-नियम) हैं, हमें क्या क्या सीखना चाहिये ।' (भिक्षुओंने) भगवान्से यह बात कही। (भगवान्ने कहा)- "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ, श्रामणेरोंको दस शिक्षा - पदों की, जिन्हें श्रामणेर भीखें- (१) प्राण-हिनाने वाज आना; (२) चोरी करनेने बाज आना; (३) अ-ब्रह्मचर्यसे वाज आना; (४) र बोलने वाज आना; (५) मद्य, कन्त्री गराब (आदि) बुद्धि-भ्रष्ट करने वाली (चीजों)ने दाज आला; (६) दोपहर बाद भोजन करनेने दाज़ आना; (७) नाच, गीत, वाजा, और चित्तको चंचल