पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/१७०

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१३।१४ ] उपसंपदाके लिये अयोग्य व्यक्ति [ १२५ (d) उस समय पड् वर्गी य भिक्षु स्थविर भिक्षुओंके श्रामणेरोंको फुसला ले जाते थे। स्थविर लोग अपने ही दतौन और मुख धोनेके जलको लेते तकलीफ पाते थे। (लोगोंने) भगवान्से यह वात कही। (भगवान्ने यह कहा)-- "भिक्षुओ! दूसरेकी परिषद् (अनुचरगण) को नहीं फुसलाना चाहिये । जो फुसलाये उसे दुक्कटका दोष हो।" 106 उस समय आयुष्मान् उ प नं द शाक्य-पुत्रके श्रामणेर कंट क ने कं ट की नामक भिक्षुणीको दूपि त किया। भिक्षु हैरान होते, धिक्कारते, दुखी होते थे--'कैसे श्रामणेर इस प्रकारके अनाचारको करेंगे !' भगवान्से यह बात कही। (भगवान्ने यह कहा). घ. निकालने का दंड--' -"भिक्षुओ! अनुमति देता हूँ, दस बातोंसे युक्त श्रामणेरको निकाल देनेकी-(१) प्राणि-हिसका दोषी होता है; (२) चोर होता है; (३) अ-ब्रह्मचारी होता है; (४) झूठ बोलने वाला होता है: (५) शराब पीनेवाला होता है; (६) बुद्धकी निंदा करता है; (७) धर्मकी निदा करता है: : (८) संघकी निंदा करता है; (९) झूठी धारणावाला होता है; (१०) भिक्षुणी- इपक होता है । भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ, (इन) दस बातोंसे युक्त श्रामणेरको निकाल देनेकी ।" 107 (१४) उपसंपदाके लिये अयोग्य व्यक्ति १-उस समय एक पंड क (=हिंजळा) भिक्षुओंके पास आकर प्रबजित हुआ था। वह जवान-जवान भिक्षुओंके पास आकर ऐसा कहता था-'आओ आयुष्मानो ! मुझे दू पि त करो।' भिक्षु फटकारते थे—'भाग जा पंड क, हट जा पंडक, तुझसे क्या मतलब है ?' भिक्षुओंके फटकारनेपर वह बड़े बड़े स्थल गरीर वाले श्रामणेरोंके पास जाकर ऐसा कहता था--'आओ आयुष्मानो! मुझे दू पि त करो।' श्रामणेर फटकारते थे—'भाग जा पंडक, हट जा पंडक, तुझसे क्या मतलब है ?' श्रामणेरोंके फटकारनेपर हाथीवानों और साईसोंके पास जाकर ऐसा कहता था-'आओ आवुसो ! मुझे दू पित करो।' हाथीवानों और साईसोंने दूपित किया और वह हैरान होते, धिक्कारते. . .थे--'यह शाक्य- पुत्रीय श्रमण पंडक है। जो इनमें पंडक नहीं हैं वह पंडकोंको दूपित करते हैं। इस प्रकार यह सभी अब्रह्म- चारी हैं। उन हाथीवानों और साईसोंके हैरान होने, धिक्कारने.. .को भिक्षुओंने सुना। (उन्होंने) भगवान्ने यह बात कही। (भगवान्ने यह कहा)- "भिक्षुओ ! उपसंपदा न पाये पंडकको उपसंपदा नहीं देनी चाहिये; और उपसंपदा पायेको निकाल देना चाहिये।" 108 २--उस समय कुलीनतासे च्युत एक पुराने खान्दानका सुकुमार लळका था। तव उस कुली- नताने च्युत पुराने खानदानके सुकुमार लळके के (मनमें) यह हुआ--मैं सुकुमार हूँ (इसलिये) अप्राप्त भोगको न प्राप्त करनेमें समर्थ हूँ, न प्राप्त भोगके प्रतिकार करने में (समर्थ हूँ) । किस उपायसे मैं सुग्वमे जी नयता हूँ, कप्टको न प्राप्त हो सकता हूँ?' तब उस कुलीनतामे च्युत पुराने खानदानके सुकुमार पुत्रके (मनमें) यह हुआ-'यह गाक्य-पुत्रीय श्रमण सु ख गी ल और सुख - आ चा र हैं। ये अच्छा भोजन कावे. (अच्छे) निवामों और शय्याओंमें सोते हैं। क्यों न मैं स्वयं पात्र - ची व र संपादितकर दाढ़ी- मुंछ मुळा, कापाय वस्त्र पहन आगममें जाकर भिक्षुओंके माथ वाम कम ?' तब उन कुलीनताने च्युत गर्न ग्वान्दानक लत केने स्वयं पात्र - ची व र संपादिनकर केा दाढ़ी मुढा, कापाय वस्त्र पहन आ ग म (-निध-निदान) में जा भिक्षुओंका अभिवादन किया । भिक्षुओंने पूछा- "आदन ! कितने वर्पके (भिक्षु) हो?" "आदनो ! किनने दर्पके होनेका क्या मतलब ?" "आदन' कौन लेग उपाध्याय है ? !