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पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/१७२

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पाये हुए हो १०३।१४ ] उपसम्पदाके लिये अयोग्य व्यक्ति [ १२७ चाहिये और उपसंपदा पाया हुआ होनेपर उसे निकाल देना चाहिये।" IIO ४-उस समय एक ब्राह्मण-पुत्र (माणवकने) माताको जानसे मार डाला। उस समय वह उस बुरे कर्मसे पश्चात्ताप करता, हैरान होता और जुगुप्सा करता था। तब उस ब्राह्मण-पुत्रके (मनमें) ऐसा हुआ—'किस उपायसे मैं इस वुरे कर्मसे निकल सकता हूँ ?' तब उस माणवकके मनमें ऐसा हुआ-'यह शाक्यपुत्रीय श्रमण धर्मचारी, समचारी ब्रह्मचारी, सत्यवादी, शीलवान्, उत्तम- धर्मवाले हैं। यदि मैं शाक्यपुत्रीय श्रमणोंके पास प्रव्रज्या पाऊँ तो इस प्रकार मैं इस बुरे कामसे मुक्त हो जाऊँ। तव उस माणवकने भिक्षुओंके पास जा प्रव्रज्या माँगी। भिक्षुओंने आयुष्मान् उपालिसे यह वात कही-'आवुस उपालि ! पहले भी एक नाग ब्राह्मण-पुत्रका रूप धारणकर भिक्षुओंमें प्रव्रजित हुआ था। अच्छा हो आवुस उपालि ! इस माणवककी पूछ-ताछ करो।' तव उस माणवकने आयुष्मान् उपालि पूछताछ करनेपर यह सब बात कह दी। आयुष्मान् उपालिने भिक्षुओंसे वह बात कही। भिक्षुओंने भगवान्से वह वात कही। (भगवान्ने यह कहा)--- "भिक्षुओ! उपसंपदा-रहित माताके हत्यारेको नहीं उपसंपदा-देनी चाहिये, और उपसंपदा उसे निकाल देना चाहिये।" III ५----उस समय एक माणवकने पिताको मार डाला था। उस समय वह उस बुरे कर्मसे पश्चात्ताप करता, हैरान होता और जुगुप्सा करता था। तब उस ब्राह्मण-पुत्रके (मनमें) ऐसा हुआ—'किस उपायसे मैं इस बुरे कर्मसे निकल सकता हूँ?' तव उस माणवकके (मनमें) ऐसा हुआ—'यह शाक्य- पुत्रीय श्रमण धर्मचारी, समचारी, ब्रह्मचारी, सत्यवादी, शीलवान्, उत्तमधर्मवाले हैं। यदि मैं शाक्य- पुत्रीय श्रमणोंके पास प्रव्रज्या पाऊँ तो इस प्रकार में इस बुरे कामसे मुक्ति पाऊँ।' तव उस माणवकने भिक्षुओंके पास जा प्रव्रज्या मांगी । भिक्षुओंने आयुष्मान उ पा लि से यह बात कही-'आवुस उपालि ! पहले भी एक नाग ब्राह्मण-पुत्रका रूप धारणकर भिक्षुओंमें प्रव्रजित हुआ था। अच्छा हो आवुस उपालि ! इस माणवककी पूछताछ करो।' तव उस माणवकने आयुष्मान् उपालिके पूछताछ करनेपर वह सब वात कह दी। आयुप्मान् उपालिने भिक्षुओंसे वह बात कही। भिक्षुओंने भगवान्से वह वात कही। (भगवान्ने यह कहा)- "भिक्षुओ! उपसंपदा-रहित पिताके हत्यारेको नहीं उपसंपदा देनी चाहिये, और उपसंपदा पाये हुए हो तो उसे निकाल देना चाहिये ।" II 2 ६-उस समय सा के त (=अयोध्या) से श्रावस्ती जानेवाले मार्गपर बहुतसे भिक्षु जा रहे थे। मार्गके वीचमें चोरोंने निकलकर किन्हीं किन्हीं भिक्षुओंको लूटा और किन्हीं किन्हींको मार डाला । श्रावस्तीसे निकलकर राजसैनिकोंने भी किन्हीं किन्हीं चोरोंको पकळ लिया और कोई कोई चोर भाग गये। वह भागे हुए चोर भिक्षुओंके पास जाकर प्रव्रजित हो गये। जो पकळे गये थे वे वधके लिये ले जाये जाने लगे। उन प्रद्रजित (चोरों) ने उन चोरोंको वधके लिये ले जाते देखा । देखकर उन्होंने यह कहा- 'अच्छा हुआ जो हम भाग गये। यदि पकळे जाते तो हम भी इसी प्रकार मारे जाते।' उन भिक्षुओंने यह पूछा-'वयों आबुनो! तुम क्या कहते हो?' तब उन प्रदजितोंने भिक्षुओंने वह सब बात कह दी। भिक्षओंने भगवान्ने यह बात कही। (भगवान्ने यह कहा)- "भिक्षुओ! यह भिक्षु (लोग) अर्हत हैं। भिक्षुओ ! अर्हत्-घातकको यदि उपनंपदा न मिली नो उपपदा न देनी चाहिये, और उपसंपदा मिली हो तो उने निकाल देना चाहिये ।" -उस नमय ना के त ने श्रावस्ती जानेवाले मार्गपर बहुतनी भिक्षुपियाँ जा रही थी। 113