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पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/१७७

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१३२ ] ३-महावग्ग [ १९४६ आयुष्मान आनंदने ऐसा कहा-'स्थविर (महाकाश्यप) का नाम भी लेनेमें मैं असमर्थ हूँ। स्थविर मेरे गुरु हैं।' -भगवान्से यह बात कही। (भगवान्ने यह कहा)- "भिक्षुओ! अनुमति देता हूँ, गोत्र (के नाम)गे पुकारनेकी।" 173 (३) अनुश्रावणके नियम १-उस समय आयुष्मान् महाकाश्यपके पास दो उपसंपदा चाहनेवाले थे। 'मैं पहले उपसंपदा लूंगा, मैं पहले उपसंपदा लूंगा' कहकर वे विवाद करते थे। भगवान्मे यह बात कही।- "भिक्षुओ! अनुमति देता हूँ एक साथ दोके अनु श्रा व ण की।" 174 २-उस समय वहुनसे स्थविरोंके पास उपसंपदा चाहनेवाले थे । 'मैं पहले उपसंपदा लंगा, मैं पहले उपसंपदा लूँगा' कहकर वे विवाद करते थे। तब स्थविरोंने कहा-'आबुमो ! (आओ) हम सब एकही अनु श्रा व ण करें।' भगवान्से यह बात कही ।-- "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ दो तीनके लिये एक अनुधावण करनेकी । लेकिन यदि उनका उपाध्याय एक हो, अनेक न हों।" 175 (४) गर्भसे बीस वर्षको उपसम्पदा उस समय आयुष्मान् कु मा र का श्य प ने गर्भ से बीस वर्ष गिनकर उपसंपदा पाई थी तव आयुष्मान् कु मा र का श्य प के (मनमें) ऐसा हुआ—'भगवान्ने विधान किया है कि बीस वर्षसे कमके व्यक्तिको उपसंपदा न देनी चाहिये और मैंने गर्भ में (आने) से लेकर बीस वर्ष जोळ उपसंपदा पाई। क्या मेरी उपसंपदा ठीक है ?' भगवान्से यह बात कही।- "भिक्षुओ! जव माताकी कोखमें पहले पहल चि त्त उत्पन्न होता है, पहले पहल विज्ञान प्रादुर्भूत होता है तवसे लेकर जन्म माननेकी है। भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ गर्भसे वीस (वर्पवाले) को उपसंपदा देनेकी।" 176 (५) उपसम्पदाके बाधक शारीरिक दोप उस समय कोढी भी, फोळेवाले भी (बुरे) चर्म-रोगवाले भी, शोथवाले भी, मृगीवाले भी उप- संपदा पाये देखे जाते थे। भगवान् से यह बात कही- "भिक्षुओ! अनुमति देता हूँ उपसंपदा करते वक्त तेरह प्रकारके (उपसंपदामें) अन्त रा यि के (=वाधक) वातोंके पूछनेकी। और भिक्षुओ! इस प्रकार पूछना चाहिये-'क्या तुझे ऐसी बीमारी (जैसेकि) (१) कोढ़, (२) गंड (=एक प्रकारका बुरा फोळा), (३) किलास (=एक प्रकारका वुरा चर्म-रोग), (४) शोथ, (५) मृगी, (६) तू मनुष्य है, (९) तू पुरुष है ? (८) तू स्वतंत्र (अदास) है ? (९)तू उऋण है ? (१०) तू राज-सैनिक तो नहीं है ? (११) तुझे माता पिताने (भिक्षु वननेकी) अनुमति दी है ? (१२) तू पूरे वीस वर्पका है ? (१३) तेरे पास पात्र-चीवर (संख्यामें) पूर्ण हैं ? तेरा क्या नाम है ? तेरे उपाध्यायका क्या नाम है ?" 177 (६) उपसम्पदा कर्म लोग (क)१–अनु शा स न-उस समय अनुशासन न किये ही उपसंपदा-चाह्नवालेसे भिक्षु (तेरह) विघ्नकारक बातोंको पूछते थे। उपसंपदा चाहनेवाले चुप हो जाते थे, मुक हो जाते थे, उत्तर नहीं दे सकते थे। भगवान्से यह बात कही।-- "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ, पहले अनुशासन दे (=सिग्वा) करके, पीछे अन्तरायिक वाधक वातोंके पूछनेकी।" 178