पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/१८१

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१३४ ] ३-महावग्ग [ १९४७ (१) 'भन्ते ! संघसे उपसंपदा माँगता हूँ। पूज्य संघ अनुकंपा करके मेरा उद्धार करे। (२) दूसरी बार भी । (३) तीसरी बार भी याचना करवानी चाहिये-पूज्यसंघसे उपसंपदा मांगता हूँ। पूज्यसंघ अनुकंपा करके मेरा उद्धार करे।' (फिर) चतुर समर्थ भिक्षु संघको ज्ञापित करे- 'भन्ते ! संघ मेरी सुने-यह इस नामवाला इस नामवाले आयुप्मान्का उपसंपदा चाहनेवाला शिष्य है। यदि संघ उचित समझे तो इस नामवाले (उम्मेदवार) से विघ्नकारक बातोंको पूछू' 'सुनता है इस नामवाले ! यह तेरा सत्यका (भूतका) काल है। जो है उसे पूछता हूँ। होने पर "है" कहना, नहीं होनेपर "नहीं है" कहना । वया तुझे ऐसी बीमारी है (जैसे कि) कोड ० तेरे पात्र- चीवर (पूर्ण संख्यामें) हैं ? तेरा क्या नाम है ? तेरे उपाध्यायका क्या नाम है ? (फिर) चतुर समर्थ भिक्षु संघको सूचित करे- क. ज्ञ प्ति--"भन्ते ! संघ मेरी (वात) सुने । यह इस नामवाला, इस नामवाले आयुप्मान्का उपसंपदा चाहनेवाला (शिष्य), (तेरह) विघ्नकारक वातोंसे शुद्ध है। (इसके) पात्र-त्रीवर परि- पूर्ण हैं। (यह) इस नामवाला (उम्मीदवार) इस नामवाले (भिक्षुको) उपाध्याय बना संघसे उपसंपदा चाहता है। यदि संघ उचित समझे तो इस नामवाले (उम्मीदवार)को इस नामवाले (आयुप्मान्) के उपाध्यायत्वमें उपसंपदा दे---यह सूचना है। ख. (अनु श्रावण)-"(१) भन्ते ! संघ मेरी सुने । यह इस नामवाला इस नामवाले आयु- ष्मान्का उपसंपदा चाहनेवाला शिप्य अन्तरायिक वातोंसे परिशुद्ध है, (इसके) पात्र-चीवर परिपूर्ण हैं। (यह) इस नामवाला उम्मीदवार इस नामवाले (आयुष्मान् ) के उपाध्यायत्वमें उपसंपदा चाहता है। संघ इस नामवाले (उम्मीदवार)को इस नामवाले (आयुष्मान् ) के उपाध्यायत्वमें उपसंपदा देता है। जिस आयुष्मान्को इस नामवाले (उम्मीदवार)की इस नामवाले (आयुष्मान् ) के उपाध्यायत्वमें उपसंपदा पसंद है वह चुप रहे। जिसको पसंद नहीं है वह वोले। (२) दूसरी बार भी इसी बातको कहता हूँ--पूज्य संघ मेरी सुने छ । (३) तीसरी बार भी इसी बातको कहता हूँ-पूज्यसंघ मेरी सुने ० जिसको पसंद नहीं है वह वोले। -"इस नामवाले (उम्मीदवार)को इस नामवाले (आयुष्मान् ) के उपाध्यायत्वमें उपसंपदा संघने दी। संघको पसंद है, इसलिये चुप है-ऐसा मैं इसे धारण करता हूँ।" उपसंपदा कर्म समाप्त (७) पंद्रह वर्षसे कमका श्रामणेर उसी समय (समय जाननेके लिये) छाया नापनी चाहिये, ऋतुका प्रमाण वतलाना चाहिये, दिनका भाग बतलाना चाहिये, संगी ति १ बतलानी चाहिये। चारों नि श्र य २ बतलाने चाहिये- (१) यह प्रव्रज्या भिक्षा माँगे भोजनके निश्रयसे है। इसके (पालनमें) ज़िन्दगी भर तुझे उद्योग करना चाहिये। हाँ (यह) अतिरेक लाभ (भी तेरे लिये विहित हैं)-संघ-भोज, तेरे उद्देश्यसे बना भोजन निमंत्रण, श ला का भोज न, पाक्षिक (भोज) उपोसथके दिनका (भोज), प्रतिपद्का (भोज)। (२) पळे चीथळोंके बनाये चीवरके निश्रयसे यह प्रव्रज्या है; इसके (पालनमें) जिन्दगी भर उद्योग करना ग.धारणा- 9 छाया ऋतु और दिनका भाग-इन तीनोंके इकट्ठा करनेको संगी ति कहते हैं । २ देखो पृष्ठ १२१-२२ भी।