पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/१८९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

. - १४२ ] ३-महावग्ग [ २१२१२ ख. अनु था व ण -(१) “भन्ते ! संघ मेरी सुने, संघ इस नामवाले विहारको उपोसथागार करार देता है; जिस आयुष्मान्को इस नामवाले विहारका उपोसथागार करार देना पसन्द हो वह चुप रहे ; जिसको न पसन्द हो बोले।...। ग. धा र णा--संघको इस नामवाले विहारको उपोमयागार करार देना स्वीकृत है, इसलिये चुप है--इसे मैं ऐसा समझता हूँ।" २--उस समय एक (भिक्षु-)आश्रममें दो उपोसथागार करार दिये गये थे। यह समझकर कि यहाँ उपोसथ होगा भिक्षु दोनों जगह एकत्रित होते थे। भगवान्ने यह बात कही :- "भिक्षुओ! एक आवास (=आश्रम) में दो उपोसथागार नहीं कगर देना चाहिये । जो करार दे उसे दुक्कटका दोप हो। भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ, एकको हटाकर इसमें उपोसथ करनेकी । 15 "और भिक्षुओ! इस प्रकार त्याग करना चाहिये, चतुर, समर्थ भिक्षु संघको सूचित करे- क. ज्ञ प्ति--"भन्ते ! संघ मेरी सुने । यदि संघ उचित समझे तो इस नामवाले उपोमथागाको त्याग दे--यह सूचना है। ख. अ नु श्रा व ण--(१) “भन्ते ! संघ मेरी सुने। मंघ इस नामवाले उपोसथागारको त्यागता है। जिस आयुष्मान्को इस नामवाले उपोसथागारका त्याग पसन्द हो वह चुप रहे; जिसको पसन्द न हो वह बोले।... ग. धा र णा--'संघने इस नामवाले उपोसथागारको त्याग दिया। मंघको पसन्द है, इसलिये चुप है-ऐसा मैं इसे समझता हूँ।" ३--उस समय एक आवासमें बहुत छोटा उपोसथागार करार दिया गया था। एक उपोसथ (के दिन) वड़ा भारी भिक्षु-संघ एकत्रित हुआ। भिक्षुओंने न करार दी हुई भूमिमें बैठकर प्रातिमोक्ष को सुना। तव उन भिक्षुओंको ऐसा हुआ--'भगवान्ने विधान किया है कि उपोसथागारके लिये सम्मति लेकर उसमें उपोसथ करना चाहिये और हमने न करार दी हुई भूमिमें बैठकर प्रातिमोक्षको सुना। क्या हमारा उपोसथ करना ठीक हुआ या वेठीक ?' भगवान्से यह बात कही- "भिक्षुओ ! चाहे करार दी हुई भूमिमें, चाहे करार न दी हुई भूमिमें प्रातिमोक्षको सुने, उपो- सथका करना ठीक ही होता है। इसलिये भिक्षुओ ! संघ जितने बड़े उपोसथके बरामदेको चाहे उतने बड़े उपोसथके बरामदेको करार दे। 14 "और भिक्षुओ ! करार इस प्रकार देना चाहिये--पहले चिह्नोंको बतलाना चाहिये । चिह्नों को वतलाकर चतुर समर्थ भिक्षु संघको सूचित करे-- क. ज्ञ प्ति---“भन्ते ! संघ मेरी सुने । चारों ओर जिन चिह्नोंकी सीमा बतलाई गई है उन चिह्नोंसे घिरे उपोसथके बरामदेको यदि संघ उचित समझे तो करार दे---यह सूचना है। ख. अनु था व ण- -(१) “भन्ते ! संघ मेरी सुने--चारों ओर जिन चिह्नोंकी सीमा बनलाई गई है उन चिह्नोंसे घिरे उपोसथके वरामदेको संघ करार देता है । इन चिह्नोंसे घिरे बरामदेका उपोसथ करार देना जिस आयुष्मान्को पसंद हो वह चुप रहे, जिसको पसंद न हो वह बोले ।... ग. धा र णा--- "इन चिह्नोंसे घिरे (स्थानका) उपोसथका बरामदा करार देना मंघको स्वीकार है, इसलिये चुप है--इसे ऐसा मैं समझता हूँ।" ४-उस समय एक आवासमें उपोसथके दिन नये नये भिक्षु सबसे पहिले ही एकत्रित हो, स्थबिर भिक्षु नहीं आ रहे हैं, यह सोच चले गये और उपोसथ अपूर्ण हो गया। भगवान्से यह बात कही- "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ उपोसथके दिन सबमे पहिले स्थविर भिक्षुओंके एकत्रित होनेकी ।" IS