पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/१९०

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२६२१४] उपोसथमें चीवर [ १४३ (३) एक श्रावासमें उपासथागारको संख्या और स्थान १-उस समय रा ज गृह में बहुत आवासोंकी एक सीमा थी, जिसके लिये भिक्षु विवाद करते थे-हमारे आवासमें उपोसथ किया जाय, हमारे आवासमें उपोसथ किया जाय । भयवान्से यह बात कही- "यदि भिक्षुओ! बहुतये आवासोंकी एक सीमा हो जिससे भिक्षु हमारे आवासमें उपोसथ किया जाय, हमारे आवासमें उपोसथ किया जाय, कहकर विवाद करें, तो भिक्षुओ ! उन सभी भिक्षुओंको एक जगह एकत्रित हो उपोसथ करना चाहिये । और जहाँ स्थविर भिक्षु रहते हैं वहाँ एकत्रित हो उपोसथ करना चाहिये । (अलग) वर्ग बाँधकर नंघको उपोसथ नहीं करना चाहिये । जो करे उने दुवकट का दोष हो ।" 16 -~-उस समय आयुष्मान् म हा का श्य प अंधक विद से रा ज गृह उपोसथके लिये आते हुए नदी पार करते वक्त गिर गये और उनके चीवर भीग गये । भिक्षुओंने आयुष्मान् महाकाश्यपसे पूछा-- 'आवुस ! किसलिये तुम्हारे चीवर भीगे हैं ? "आवुनो ! आज मैं अंधक वि द से गजगृह पोसथके लिये आ रहा था। रास्ते में नदी पार करते गिर गया इसलिये मेरे चीवर भीगे है । भगवान्ने यह बात कही ।-- "भिक्षुओ ! एक उपोसथवाल एक निवास स्थानकी जो सीमा मंधने करार दी है संघ उस सीमावो तीन चीबगंवा नियम न रखकर कगा। 17 और भिक्षओ ' इस प्रकार बगर देना चाहिय, चतुर समर्थ भिक्षु मंघको सूचित करे-- वा. जलि--"भन्ने । मघ मेरी सुने । संघने जो एक उपोनयवाले एक निवास-म्यानकी सीमा कगा दी है, यदि संघ चित समझे तो वह उस नीमाको नीन नीवरका नियम न रखकर बगरद--यह मुचना है। १. अनु श्रावण--(१) "भन्ने ! संघ मेरी मुने । नंघने जो एक उपोमयवाले एक निवास- मानवी मीमा बगर दी। उस सीमाको संघ तीन चीवरका नियम न पकर कगर देता है। जिम आया मान्को रगनीमा नान बीबरका नियम न रहनेका कगार देना पनंद हो वह चुप रहे; जियवः पयंद नही बोले ।... ग. या रणा--'गंघको उगनीमाका नीन चीकरका नियम न पहनेका करार देना स्वीकृत मलिन है-ने मंगा नयााता है। !