पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/२३६

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४-प्रवारणा-स्कंधक १.--प्रवारणामें स्थान, काल और व्यक्ति-संबंधी नियम । २-कुछ भिक्षुओंकी अनुपस्थितिमें की गई नियम-विरुद्ध प्रवारणा। ३--असाधारण प्रवारणा। ४-प्रवारणा स्थगित करना। ५--प्रवारणाकी तिथिको आगे बढ़ाना । ६१-प्रवारणामें स्थान, काल और व्यक्ति सम्बन्धी नियम १-श्रावस्ती (१) मौन व्रतका निषेध १-उस समय बुद्धभगवान् श्रा व स्ती में अना थ पिं डि क के आराम जे त व न में विहार करते थे। उस समय बहुतसे प्रसिद्ध संभ्रान्त भिक्षु को स ल देशके एक भिक्षु-आश्रममें वर्षावास करते थे । तव उन भिक्षुओं को यह हुआ—'किस उपायसे हम एक मत विवाद-रहित हो मोद-युक्त, अच्छी तरह वर्षावास करें, और भोजनसे न दुख पायें ।' तव उन भिक्षुओं को यह हुआ- 'यदि हम एक दूसरेसे आलाप-संलाप न करें, जो भिक्षा करके गाँवसे पहले आये वह आसन विछावे, पैर धोनेवा जल, पैर धोनेका पीढ़ा, पैर रगळनेकी कठली, रक्खे, कूळेकी थालीको धोकर रक्खे, धोने-पीनेके पानीको रक्खे, भिक्षा करके गाँवसे पीछे आये, तो जो कुछ खाकर बचा हुआ हो यदि चाहे तो उसे खाय, न चाहे तो तृण-रहित स्थानमें छोळदे या प्राणी-रहित पानीमें डाल दे, और वह आसनको उठाये, पैर धोनेका जल, पैर धोनेका पीढ़ा, पैर रगळनेकी कठली समेटे, कूळेकी थालीको धोकर रखदे, धोने-पीनेका पानी उठावे, और चौकेको साफ करे। जो पीनेवाले पानीके घळे, इस्तेमाल करनेवाले पानीके घळे, या पाखानेके घळेको रिक्त, खाली देखे तो उसे भरके रखदे । यदि उसने न होसके तो हाथ के इशारेसे बुलाकर हाथके संकेतसे रखवा दे । उसके कारण दुर्वचन न बोले । इस प्रकार हम एकमत, विवाद रहित हो मोदयुक्त, अच्छी तरह वर्षावास कर सकेंगे और भोजनसे भी न दुख पायेंगे। तब उन भिक्षुओंने एक दूसरेने आलाप-संलाप नहीं किया • उसके कारण दुर्ववचन नहीं दोले । यह नियम था कि वकि दाद वर्गादास करके भिक्षु भगवान्के दर्शनके लिये जाते थे । तव वीदान समाप्त कर तीन महीनेके दाद आसन-बासन समेट, पात्र-चीवर ले वह भिक्षु था व स्ती की ओर चल पळे । मशः जहाँ श्रावस्तीमें बना थपिडि क का आराम जेत व न था और जहाँ भगवान् थे वहीं पहुँचे । पहुँचकर भगवान्को अभिवादन कर एक ओर वैठे । बुद्ध भगवानोंका यह नियम है कि वह आये भिक्षुओन कुगल-प्रश्न पूछते हैं । तब भगवानने उन भिक्षुओंसे यह कहा- "नियो ! अन्टा तो रहा. यापन करने योग्य तो रहा ? तुम लोगोंने एकमत, विवाद- नति हो गोद-बुबा अच्छी तरह वर्षावास तो किया ? भोजनके लिये तुम्हें तकलीफ तो नहीं हुई ?" [ १८५ ४