३-महावग्ग [ ४१११ "हाँ भगवान् ! अच्छा रहा, यापन करने योग्य रहा, हमने एक मत विवाद-रहित हो मोद- युक्त अच्छी तरह वर्षावास किया, भोजनके लिये हमें तकलीफ़ नहीं हुई।" जानते हुए भी ( किसी किसी वातको ) तथागत पूछते हैं, जानते हुए भी ( किसी किसी बातको) नहीं पूछते । काल जानकर पूछते हैं, (न पूछने का ) काल जानकर नहीं पूछते । तथागत सार्थक (वात ) को पूछते हैं, व्यर्थकी ( वातको) नहीं (पूछते) । व्यर्थकी ( वातका पूछना) तथागतकी मर्यादासे परे है । बुद्ध भगवान दो कारणोंसे भिक्षुओंसे पूछते हैं-(१) धर्म उपदेश करने के लिए; (२) या शिष्योंके लिए शिक्षा पा द (= नियम ) विधान करनेके लिए । तब भगवान्ने उन भिक्षुओंसे यह कहा:- "भिक्षुओ ! कैसे तुमने एकमत विवाद-रहित हो मोद-युक्त अच्छी तरह वर्षावास किया और तुम्हें भोजनके लिये तकलीफ़ नहीं हुई।" "भन्ते ! हम बहुतसे प्रसिद्ध संभ्रान्त भिक्षु कोसल देशके एक भिक्षु-आश्रममें वर्षावास करने लगे । तब हम भिक्षुओंको यह हुआ—किस उपायसे०१ उसके कारण दुर्वचन न बोले । इस प्रकार भन्ते ! हमने एकमत विवाद-रहित हो मोद-युक्त अच्छी तरह वर्षावास किया; और भोजनके लिये तकलीफ नहीं हुई।" तब भगवान्ने भिक्षुओंको संबोधित किया- "भिक्षुओ ! न-अच्छी-तरहसे ही इन मोघ-पुरुषों (= निकम्मे आदमियों)ने वर्पावास किया तो भी यह समझते हैं कि इन्होंने अच्छी तरहसे वर्षावास किया । भिक्षुओ ! इन मोघ-पुरुषोंने पशुओंकी तरह ही एक साथ वास किया, तो भी यह समझते हैं कि इन्होंने अच्छी तरह वर्षावास किया भिक्षुओ ! इन मोघ-पुरुषोंने भेळोंकी तरह ही एक साथ वास किया, तो भी० । भिक्षुओ ! इन मोघ- पुरुषोंने पक्षियोंकी तरहही एक साथ वास किया, तो भी० । भिक्षुओ ! कैसे इन मोघ-पुरुषोंने ती थि कों के मूक व्रतको ग्रहण किया ! भिक्षुओ ! यह न अप्रसन्नोंको प्रसन्न करनेके लिए है।" फटकार कर धर्म-संबंधी कथा कह, भगवान्ने भिक्षुओंको संबोधित किया- "भिक्षुओ ! मूक व्रतको, जिसको कि तीथिक लोग ग्रहण करते हैं-नहीं ग्रहण करना चाहिये । जो ग्रहण करे उसको दु क क ट का दोष हो। भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ वर्पावास समाप्त किये भिक्षुओंको देखे, सुने और सन्देह वाले इन तीन तरह (के अपराधों या दोपों)की प्र वा र णा (-वारणा- मार्जन) करनेकी और वह तुम्हें एक दूसरेके लिये अनुकूल, दोप हटाने वाली, विनय-अनुमोदित होगी।" I "और भिक्षुओ ! प्र वा र णा इस प्रकार करनी चाहिये-चतुर, समर्थ भिक्षु संघको सूचित करे-'भन्ते ! संघ मेरी सुने । आज प्रवारणा (=पवारणा) है । यदि संघ उचित समझे तो वह पवा- र णा करे ।' तव स्थविर (=वृद्ध) भिक्षु एक कंधेपर उत्तरासंग रख उकळू वैठ, हाथ जोळ ऐसा कहे—'आवुस ! संघके पास देखे, सुने और संदेह वाले इन तीन प्रकारके (अपने अपराधोंकी) प्रवारणा करता हूँ । आयुष्मान् कृपा करके मुझे (मेरे) देखे, सुने और संदेह वाले अपराधोंको बतलावें । देखनेपर मैं उनका प्रतिकार करूँगा । दूसरी वार भी० । तीसरी बार भी० ।' (फिर) नये भिक्षुको एक कंधेपर उत्तरासंघ करके उकळू बैठ, हाथ जोळकर ऐसा कहना चाहिये-'भन्ते ! संघके पास ( देखे, सुने और संदेहवाले इन तीन प्रकार अपराधोंकी ) में प्रवारणा करता हूँ। आयुष्मान् कृपा करके मुझे ( मेरे ) देखे, सुने और संदेहवाले अपराधोंको बतलावें । देखनेपर में उनका प्रतिकार करूँगा। दूसरी बार भी० । तीसरी बार भी०'।" में १ देखो पष्ठ १८५ (१)।
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