पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/२३८

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10 ४९११५ ] अनुपस्थितकी प्रवारणा [ १८७ (२) वृद्धोंके सामने बैठने में नियम १–उस समय पड्वर्गीय भिक्षु स्थविर भिक्षुओंके उकळू वैठ प्रवारणा करते वक्त आसनोंपर ही बैठे रहते थे । ( इससे ) जो वह अल्पेच्छ भिक्षु थे हैरान होते थे—'कैसे पड़वर्गीय भिक्षु स्थविर भिक्षुओंके उकळू बैठ प्रवारणा करते वक्त अपने आसनोंपर ही बैठे रहते हैं !' तब उन भिक्षुओं ने भगवान्से यह बात कही- "सचमुच भिक्षुओ ! षड्वर्गीय भिक्षु स्थविर भिक्षुओंके उकळू बैठ प्र वा रणा करते वक्त आसनोंपर ही बैठे रहते हैं ?' "(हाँ) सचमुच भगवान् बुद्ध भगवान्ने फटकारा-"कैसे भिक्षुओ ! वे मोघपुरुप स्थविर भिक्षुओंके उकळू वैठे प्रवा- रणा करते वक्त आसनपर ही बैठे रहते हैं ? भिक्षुओ ! न यह अप्रसन्नोंको प्रसन्न करनेके लिये है० ।" -फटकार करके धर्म संबंधी कथा कह भगवान्ने भिक्षुओंको संबोधित किया- "भिक्षुओ ! स्थविर भिक्षुओंके उकलूं बैठ प्रवारणा करते वक्त आसनपर नहीं बैठना चाहिये । जो वैठे उसे दुव क ट का दोष हो । भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ, सभीको उकळू बैठ प्र वा रणा करने की।"2 २-उस समय बुढ़ापेसे अतिदुर्वल एक स्थविर सबके प्रवारणा कर लेनेकी प्रतीक्षामें उकळू बैठे मूछित होकर गिर पळे । भगवान्से यह वात कही- "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ तब तक उकळू बैठने की जब तक कि उसके पासवाला प्रवारणा करे और ( अनुमति देता हूँ ) प्रवारणा कर लेनेपर आसनपर बैठने की ।"3 (३) प्रवारणाकी तिथियाँ तव भिक्षुओंको एसा हुआ-'कितनी प्रवारणाएँ हैं !' भगवान्से यह बात कही- "भिक्षुओ ! चतुर्दशीकी और पंचदशीकी, यह दो प्रवारणाएँ हैं ।"4 (४) प्रवारणाके चार कर्म तब भिक्षुओंको ऐसा हुआ-"कितने प्रवारणाके कर्म हैं ?" भगवान्से यह बात कही- "भिक्षुओ ! यह चार प्रवारणाके कर्म हैं-(१) धर्म-विरुद्ध वर्ग (=अपूर्ण संघ)का प्रवारणा कर्म, (२) धर्म-विरुद्ध संपूर्ण (संघ)का प्रवारणा कर्म, (३) धर्मानुसार वर्गका प्रवारणा कर्म, (४) धर्माननार संपूर्ण ( संघ ) का प्रवारणा कर्म । भिक्षुओ ! जो यह धर्म-विरुद्ध वर्गका प्रवारणा कर्म है, ऐने प्रशारणा कर्मको नहीं करना चाहिये, और मैंने इस प्रकारके प्रवारणा कर्मकी अनुमति नहीं दी है । भिक्षुओ ! जो यह धर्म-विराद्ध समग्र (संघ) का प्रवारणा कर्म है ऐसे प्र वा र णा कर्मको नहीं करना चाहिये; और मैंने ऐसे प्रदारणा कर्मकी अनुमति नहीं दी है । भिक्षुओ ! जो यह धर्मानुसार वर्गका प्रतारणा कर्म है, ऐने प्रवारणा कर्म को नहीं करना चाहिये; और ऐमे प्रवारणा कर्मकी मैंने अनुमति नहीं दी है । भिधुनो ! जो यह धर्मानुसार समग्र (नंघ )का प्रवारणा कर्म है ऐने प्रवारणा कर्मको करना चाहिये । इस प्रकारके प्रदारणा कर्मकी मैने अनुमति दी है । इसलिये भिक्षुओ ! तुम्हें यह नीलना चाहिये कि जो यह धर्मानुसार नमन (मंघ ) का प्रवारणा कर्म है ऐसे प्रवारणा कर्मको ! ( (५) अनुपस्थितकी प्रवारणा

- नवान्ने निक्षुकोजो नंबोधित किया-